कविता संग्रह ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ से
क्षुद्रता
वह बैठा रहा अपनी विशाल कुर्सी पर
उसने बैठने को नहीं कहा
सामने खड़े हुए मनुष्य से…
हालाँकि इस तरह
सामने खड़ा हुआ मनुष्य
कुर्सी पर बैठे हुए आदमी से
कुछ इंच ही सही
पर ऊँचा दिख रहा था
अहंकार और सरकारी फ़ाइलों की
जानी-पहचानी दुर्गन्ध के बीच
सामने खड़े हुए मनुष्य को देखकर
जब तृप्त हो गई उसकी क्षुद्र आत्मा
तो उसे फिर किसी दिन आने का कहते हुए
वह वॉशरूम में घुस गया।
यह रात
कहीं नींद है
कहीं चीख़ें
कहीं दहशत
पर सबसे भयावह बात है
कि यह बिना स्वप्न की रात है!
डूबना
इस तरह
डूबने का
अपना आनंद है
जैसे दिनभर की हाड़तोड़ मेहनत के बाद
कोई चुपचाप चला जाए
गहरी नींद में…
या फिर कोई स्त्री
अपने बच्चे को
स्तनपान कराने
और उसे लोरी सुनाने के बाद
दबे पाँव निकल जाए
रात की पाली में
अपने काम पर।
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