रंग भरने की कला आती हो तो रंगों में कविता कैसे उभरती है, इसका जीता-जागता उदाहरण है जिम जारमुश् की फ़िल्म ‘पैटर्सन’, जिसका नायक एक बस ड्राइवर और एक कवि होने के साथ-साथ ही अपने ही पसंदीदा कवि की कल्पना का एक अंग भी है। इसी फ़िल्म पर पिछले दिनों पोषम पा के पॉडकास्ट ‘अक्कड़ बक्कड़’ में बातचीत की गई और अभी हाल ही में हमें इस फ़िल्म में आयी और रॉन पैजेट द्वारा लिखी गईं कविताओं के अनुवाद लाखन सिंह जी द्वारा प्राप्त हुए। ज़रूर पढ़ें! पॉडकास्ट का लिंक भी नीचे दिया जा रहा है—
कविताएँ: रॉन पैजेट (Ron Padgett)
अनुवाद: लाखन सिंह
प्रेम कविता
बहुत सारी माचिस हैं हमारे पास
घर में।
इर्द-गिर्द पड़ी रहती हैं, हमेशा।
हाल फ़िलहाल हमारा पसन्दीदा ब्राण्ड है ‘ओहियो ब्लू टिप’
हालाँकि हम ‘डायमंड’ ब्राण्ड को तवज्जो देते थे
लेकिन यह पहले की बात है जब हम ओहियो ब्लू टिप से बेख़बर थे।
यह शालीनता से पैक की हुई होती है,
मज़बूत छोटे-छोटे डिब्बों में,
गहरे और मद्धम, नीले व सफ़ेद रंगों में अंकित शब्द
जो किसी मेगाफ़ोन जैसे नज़र आते हैं,
लगता है जैसे ऊँची आवाज़ में दुनिया से कह रहे हों—
“ये रही दुनिया की सबसे सुंदर माचिस,
डेढ़ इंच की इसकी मुलायम तीली
जिसके सर पर है गहरी बैंगनी टोपी
गम्भीर, उग्र और हठी तैयार है चिंगारी भड़काने के लिए
शायद जिस औरत से तुम प्रेम करते हो उसकी सिगरेट सुलगाने के लिए
पहली बार,
और उसके बाद सब कुछ बदल जाएगा।
ये सब हम तुम्हारे लिए करेंगे।”
यही सब तो तुमने मुझे दिया है,
मैं सिगरेट बन गया और तुम माचिस
या मैं माचिस और तुम सिगरेट,
चुम्बनों की दहक के साथ
जो सुलगते रहेंगे स्वर्ग की तरफ़…
एक और
जब तुम बच्चे थे
तुमने सीखा
ब्रह्माण्ड के तीन आयाम है:
ऊँचाई, चौड़ाई और गहराई।
जूते के डिब्बे की तरह।
फिर बाद में तुमने सुना
चौथा आयाम भी है:
समय।
हम्म।
फिर कोई कहेगा
और भी हो सकते हैं… पाँच, छः, सात…
मैंने काम ख़त्म किया,
एक बियर ली
बार में।
मैंने गिलास को देखा
और ख़ुशी से झूम उठा।
कविता
मैं घर पर हूँ।
बाहर मौसम सुहावना है:
गर्म सूरज ठण्डी बर्फ़ पर।
वसंत का पहला दिन
या शिशिर का अंतिम।
मेरे पैर सीढ़ियों से होकर
दरवाज़े के बाहर भाग जाते हैं,
मेरा ऊपरी हिस्सा यहाँ लिख रहा है।
लाली
जब मैं तुमसे पहले जाग जाता हूँ
और तुम्हारा चेहरा अपनी तरफ़ पाता हूँ,
तकिये पर चेहरा और इर्द-गिर्द उलझे बाल,
इस सुनहरे मौक़े पर तुम्हें तकता हूँ,
प्रेम में विस्मित डरता हूँ कि
कहीं तुम आँखें खोलो और
भीतर आती रौशनी तुम्हें डरा न दे।
लेकिन जब उजाला नहीं होगा तब
तुम जान पाओगी
मेरा दिल और दिमाग़ किस तरह तुम्हारे लिए फटते हैं,
उनकी आवाज़ें ऐसे बंद हैं जैसे
अजन्मे शिशु,
जो डरते हैं कि कभी
नहीं देख पाएँगे वे दिन का उजाला।
धीरे-धीरे खिड़की से प्रकाश फूटता है
बरसाती नीला और धूसर।
मैं अपने जूते पहनता हूँ और
कॉफ़ी बनाता हूँ नीचे जाकर।
झरता पानी
पानी झरता है उजली हवा से।
ये बालों की तरह झरता है।
एक जवान लड़की के कंधों के
आसपास झरता।
पानी झरता।
डामर में कुण्ड बनाता।
बादल और इमारतों के अक्स उभरते मैले शीशों पर।
ये झरता है मेरे घर की छत पर,
ये झरता है मेरी माँ पर, और मेरे बालों पर।
ज़्यादातर लोग इसे बारिश पुकारते हैं।
यात्रा
अरबों अणुओं से गुज़रता हूँ मैं
जो हट जाते हैं मुझे
रास्ता देने के लिए,
जबकि दोनों तरफ़ और ख़रबों अणु
जहाँ होते हैं, वहीं रहते हैं।
वाइपर अगले शीशे को साफ़ करते हुए
चीख़ने लगता है।
बारिश थम गयी है।
मैं भी।
कोने पर
माँ का हाथ थाम रहा है
पीला बरसाती पहने एक लड़का।
प्यारा (Pumpkin)
मेरी प्यारी दोस्त,
कभी-कभी मैं दूसरी लड़कियों के बारे में
सोचना चाहता हूँ,
लेकिन सच तो यह है कि
अगर तुम चली गयीं छोड़कर मुझे
मैं अपना दिल निकालकर नोच लूँगा
और कभी नहीं रखूँगा वापस।
तुम्हारे जैसी कोई नहीं हो सकती।
कितना शर्मनाक है!
पंक्ति
एक पुराना नग़्मा गुनगुनाते थे
मेरे दादा
जिसमें एक सवाल था—
“या फिर तुम एक मछली होना चाहोगे?”
इसी गाने में
यही सवाल बार-बार दोहराया जाता
पर कभी खच्चर तो कभी सूअर के साथ,
लेकिन जो मुझे सुनायी पड़ता है कभी-कभी
मेरे मस्तिष्क में
वह मछली वाला है।
सिर्फ़ वो एक पंक्ति।
या फिर तुम एक मछली होना चाहोगे?
मानो बाक़ी का गीत
होना ही नहीं चाहिए।
(Ah haan!)
नाज़िम हिकमत की कविताएँ