मैं और एक कुल्हाड़ी

इस बग़ीचे में
मैंने जितने पौदे लगाए हैं
किसी दिन अपनी उदासी की कुल्हाड़ी से
मैं ही उन्हें उखाड़ फेंकूँगा

मेरे अंदर वहशत के बीज बोने वाली दुनिया
मुझे ही वहशत से देख रही है

मैं अपनी हथेलियों की लकीरों की सियाही छीनकर
आज लिखूँगा उससे मुलाक़ात
और फिर हम दोनों
कई दिनों तक लिखेंगे ‘आराम’
थकी हुई हथेलियों की क़िस्मत में
और सो जाएँगे
अपने ही उखाड़े हुए पौदों की क़ब्रों से लिपटकर!

आवाज़ से उलझी एक तवील नज़्म

मैं मर जाऊँगा उसी तरह
जिस तरह मंटो की कहानी ‘बादशाहत का ख़ात्मा’ का आशिक़ मरा था
तुम्हें सुनते हुए
तुम्हारी आवाज़ के चाँद को घूरते हुए
तुम्हारी ज़हानत के रेज़े चुनते हुए

वो देखो एक चाप
जिससे डरकर तुम लाल ख़ला में गुम हो जाती हो
मगर तुम्हारा डरना या गुम होना मेरे लिए
ख़ुशी की बात है
तुम मुझे छुपा लेती हो सीने की लकीर में
रख लेती हो ट्रॉउज़र में उड़सकर
मुझे महसूस होता है कि मैं एक किताब हूँ
जिसे लाइब्रेरी की ख़ामोशी में पढ़ते हुए तुम चौंक पड़ती हो
वही एक चाप सुनते हुए
और बंद कर देती हो मुझे
बग़ैर पेज नम्बर देखे
बिना जाने कि इबारत कहाँ से छूट गई

तुम इस बात पर झुँझलाती हो कि तुम्हें मुझे छुपाना पड़ रहा है
और मैं इस बात पर ख़ुश होता हूँ कि मैं तुम्हारा सबसे गहरा राज़ हूँ

राज़
जिनकी तहों में होते हैं कश्मकश के धागे
उँगलियों के दरमियान उभर आने वाले पसीने के क़तरे
छलक जाने वाले अन्होने जज़्बे
रात की तरफ़ खुलते हुए तह-ख़ाने
पानी में डूबते हुए ख़ौफ़ के शिकारे

तुम भाप को बदन में छुपाकर अपना वजूद भिगो रही हो
ख़ुश्बू को ज़हन में क़ैद करके मरे हुए पानी में तैर रही हो

मैं जिस दिन भी खुला, जितना भी खुला
तुम पर ही खुलूँगा
दो गुलाब की पत्तियों तक जाते हुए रास्ते
गुलाब की डण्ठल की तरह सख़्त काँटेदार होते हैं
मुझे भी ये काँटे चुभेंगे
मुझे भी ये ज़ख़्म लगेंगे
मेरा भी ख़ून बहेगा
मैं भी तन्हाई में उदास होकर तुम्हारे फ़ोन के नम्बरों को जोड़ते-जोड़ते
गहरी नींद में डूब जाऊँगा
और फिर ख़्वाब में आएगी तुम्हारी आवाज़
लम्स का पैरहन पहने हुए

फिर हम बातें करेंगे
इस बार तुम कॉल नहीं काटोगी
फ़ोन नहीं रखोगी
ज़िन्दगी-भर मैं तुमसे बात करता रहूँगा
तब तक जब तक तुम्हारे बदन के जंगल में फैली हुई धुंध छट न जाए
जब तक तुम्हारी आवाज़ से उलझने का मेरा सारा ग़ुरूर तुमसे नाग की तरह लिपट न जाए
जब तक ये ज़िन्दगी किसी लगातार जारी कॉल की तरह अपने आप कट न जाए!

क़िस्सा एक गुलाबी छाल का

महीन गुलाबी ज़र्रों से बनायी गई
एक छाल
लिपटी है उसके वजूद से
वो तन्हाई जैसा क़द रखने वाली
उदासी जैसी ख़ूबसूरती
और इम्तिहान जैसी आँखों वाली लड़की
सफ़ेद लिबास में बैठी रहेगी कुछ देर
फिर उठकर चल देगी

उसे और बहुत से काम हैं
धनक बुनना है
बरसात उगानी है
रात उकेरनी है
हिज्र तराशने हैं
वस्ल सोचने हैं

इसलिए उस गुलाबी रंग की लड़की को
हरे जंगलों में अकेले भटकने दो
रहना है तो पगडण्डी बनकर उसके साथ-साथ चलो!

मैं कभी इतना हसीन नहीं लगा

मैं इससे पहले कभी इतना हसीन नहीं लगा
जब तक उसने मुझे पूरा पढ़ नहीं लिया

आज मैं आईने में उतरी हुई धूप की तरह
ख़ूबसूरत हूँ
पढ़ी हुई किसी किताब की तरह पुर-सुकून हूँ
हँसती हुई किसी बच्ची की तरह बे-परवा हूँ
रूहों की तरह आज़ाद हूँ

मैं जिंस के बाहर निकलकर सोच पा रहा हूँ
वक़्त के उस तरफ़ देख पा रहा हूँ
ख़ुद को बहुत क़रीब जाकर छू पा रहा हूँ

आज से पहले
मैं एक बढ़ई था
जो अपने ही बनाये किसी संदूक़ में क़ैद हो

आज के बाद
मैं एक लोहार हूँ
जो अपनी ही बनायी ज़ंजीरें पिघला रहा है।

कुछ नहीं हो सकता फिर भी

उससे बात करके लगता है
ख़ुद-कुशी कोई बेहतर विकल्प नहीं
मायूसी कोई आख़िरी जवाज़ नहीं
ख़ामोशी कोई मुस्तक़िल चीज़ नहीं

उससे बात करके महसूस होता है
दुनिया एक ताक़तवर मर्द नहीं
कोई छुपी हुई ख़ूबसूरत औरत है
जिस तक पहुँचने के लिए
सात समुन्दर पार करने होंगे
सात सवाल हल करने होंगे
सत्तर हूरों को ठुकराना पड़ेगा

उससे बात करके याद आता है
अभी कल परसों तक मैं सोच रहा था
इस दुनिया का कुछ नहीं हो सकता
फिर भी…

उन आँखों में

मैं उन आँखों के दर पर खड़ा
गहराई में उतरती सीढ़ियों को देख रहा हूँ
जो आसमानी रंग की ज़मीन तक पहुँचती हैं
उन आँखों में नीले सोने की रमक़ है
और होंठों पर उलझी हुई बैंगनी और काही धूप के धागे

मैं झुँझलाकर देख रहा हूँ
ज़ख़्मी दुनिया से लिपटी हुई अपनी ज़िन्दगी को
मुझे काग़ज़ की एक आस्तीन सिलना है
जिसकी धज्जियों से बनाए जा सकें सफ़ेद साँप
जो नज़्मों की तरह रेंगते हों मेरे पूरे बदन पर

अभी उन आँखों की सीढ़ियों में उतरकर
मुझे देखना है
कि क़न्दीलों की मदद से हवा में कैसे आग लगायी जा सकती है
नीला रंग कैसे सब्ज़ और फिर ज़र्द और फिर सियाह हो जाता है

मुझे पानी पर चलना है, बिना पाँव तर किए
जैसे मैं बहुत दिनों से लिपट रहा हूँ उसकी आवाज़ से
बिना उसे छुए!

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तसनीफ़
तसनीफ़ हिन्दी-उर्दू शायर व उपन्यासकार हैं। उन्होंने जामिआ मिल्लिया इस्लामिया से एम. ए. (उर्दू) किया है। साथ ही तसनीफ़ एक ब्लॉगर भी हैं। उनका एक उर्दू ब्लॉग 'अदबी दुनिया' है, जिसमें पिछले कई वर्षों से उर्दू-हिन्दी ऑडियो बुक्स पर उनके यूट्यूब चैनल 'अदबी दुनिया' के ज़रिये काम किया जा रहा है। हाल ही में उनका उपन्यास 'नया नगर' उर्दू में प्रकाशित हुआ है। तसनीफ़ से [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है।