‘हथेली में इन्द्रधनुष’ से
अनुवाद: सुजाता शिवेन
पूछते हो कविता क्यों लिखें
किसके लिए?
कविता क्या किसी के लिए लिखी जाती है?
कविता क्यों, क्या यह प्रश्न पूछा जाता है,
बहुत दिन हुए एक कवि
रिल्के ने दिया था संक्षिप्त
उत्तर—
अगर सोचते हो कविता न लिखने से भी काम चल जाएगा,
तो लिखो मत।
लिखते हैं कल को साक्षी रहने के लिए
मानव के भाग्य का,
आम की गुठली, मांड भी न पाकर
वे अनाहार में मरे हैं कि नहीं
उसी बाबत तमाम युक्ति तर्क की।
कविता लिखते हैं
बेकार, बावरा, कौड़ी-भर का मूल्य नहीं
हाथों में साग भी न सीझे उन शब्दार्थों के लिए।
वह भी लगभग सुनायी न पड़े आवाज़ में।
लिखते हैं किसी के पीछे छुपकर खड़े होकर
एक शब्द कहने के लिए, “मैं यहीं हूँ
तू अकेला नहीं, मेरे भाई।”
लिखते हैं झीना रेशम, कुंडल के लिए नहीं
लिखते हैं, गाय के पगुराने से न डरकर
दूब घास एक पूरे दिन खटकर एक मिलीमीटर का
दसवाँ भाग अपने को बढ़ाती रहती
तुच्छ कर प्राण अपने विश्व नियन्ता को
उसी के साहस, उसी आनन्द में
भागीदार होने के लिए।
लिख रहे हैं इसी भरोसे पर कि
हमारे न होने पर शायद
हमारे शब्द किसी न किसी को
सान्त्वना की एक वाणी सुनाएँगे
कोई एक कहेगा
जीवन को प्यार करता था वह शख़्स।