नेपथ्य से संगीत
कान में बाँसुरी की तरह
बजती रही तुम्हारी पुकार
शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं
रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच
मैं सिर पर शौर्य पताका ताने
सूर्य-सा चमकता खड़ा था
मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में
इस विभीषिका में
बाँसुरी के संगीत की रौ में
आँखें मूँद बह जाने का अर्थ होता—
तीर का गले को बींधते चले जाना
बाँस की धुन पर
थिरकती रही तलवार!
युद्ध में हूँ
जीवट की यह बेला है
हर योद्धा युद्ध में अकेला है
सुदूर कहीं, गिरी-कंदराओं में
दिव्यदीप की खोज में हूँ
खिंची धनुष की प्रत्यंचा पर
नये नुकीले तीर में हूँ
पूर्वजों से चली आयी
धारदार शमशीर में हूँ
तुम गा रही हो विरह के गीत
युद्ध और विरह के असमंजस से जूझता
विरह में भस्मीभूत मैं युद्ध में हूँ
मंथन
समुद्रों के रहस्य-सी
गुम हुईं तुम
समुद्र खोज
तुम्हें ले आने के
मंथन में
मेरे हिस्से आया विष
भटकना शापग्रस्त
नारद की तरह
अश्वत्थामा की तरह
रहना निरंतर अधमरा
अब मैं वैतरणी तरना चाहता हूँ
मैं अपने भीतर मथना चाहता हूँ!
सुगबुगाहट
लड़की की दिनचर्या में
शामिल है,
दिन में एक बार
हँसकर
पागल कहना लड़के को
है सुगबुगाहट
नये नवेले प्रेम की!
अंतिम
कोई नहीं लिखेगा
अब तुम्हारे लिए कविताएँ
यदि यह कविता है
तो है, अंतिम
जिसे तुम नहीं पढ़ पाओगी!