मुझे याद नहीं पहली बार मैंने प्रेम शब्द कब सुना, कब पढ़ा या कब लिखा। बचपन में मैं जिन अंकल के यहाँ दूध लेने जाया करता था, उनके पास एक कुत्ता था शेरू नाम का। पहली बार जब उसे देखा तो मैं तो डर गया था, दिखने में डरावना था। मुझे देखते ही फ़ौरन मेरे पास आ गया और पूँछ हिलाने लगा। मैं थोड़ा घबराया हुआ था, पापा का हाथ पकड़कर सर उठाकर उन्हें देखा तो पापा ने कहा- “कुछ नहीं… वो प्यार कर रहा है तुम्हें।”

तब भी मुझे डर ही समझ आया, प्रेम नहीं। दूध लेकर वापस लौटते वक़्त मैनें देखा एक बकरी अपने बच्चे को दूध पिला रही है। थोड़ा आगे चला तो देखा एक गाय अपने बछड़े को चाट रही है। मैनें पापा से पूछा कि ये गाय बछड़े को क्यूँ चाट रही है, तो फिर से पापा ने कहा कि वो अपने बच्चे को लाड़ कर रही है।

यह सब तो रोज़ होता था लेकिन आज मेरी नज़रें सब पर जा रही थीं। उस दिन मैनें प्रेम को महसूस किया।

जब मैं और मेरी बहन स्कूल से पैदल लौटते तो वह मेरा हाथ थाम लेती थी और हम बातें करते-करते घर का रास्ता तय करते थे। पापा मुझे अपनी गोद में बिठाकर नहलाते थे, माँ बड़े प्यार से एक हाथ से मेरे गाल पकड़ती और दूसरे से मेरी कंघी करती। प्रेम से मेरा परिचय यही था…।

स्कूल में भी प्रेम किया दोस्तों से, अपनी साइकिल से भी, अपनी ख़ास दोस्त से भी, सभी से। प्रेम करना अपने आप ही आता है, कोई हाथ पकड़ नहीं सिखाता। बड़ी ही सहजता से आप बचपन में ही प्रेम करना सीखते हैं। हमारे बुज़ुर्ग ही हमें प्रेम करना सिखाते हैं। हम भी तो उन्हें आपस में प्रेम करते हुए देखते ही हैं। फिर जब बात किसी लड़की या लड़के के साथ प्रेम करने की आती है तब क्यूँ हम प्रेम को इतनी ओछी नज़रों से देखने लगते हैं? जैसे शादी के बाद दो लोग आपस में प्यार कर सकते हैं, पैरेंट्स को यह समझना होगा कि शादी के पहले भी प्रेम होता है। जैसे शादी के बाद शारीरिक सम्बन्ध बन सकते हैं, वैसे ही शादी के पहले भी। प्रेम सदियों से किया जाता रहा है, सदियों तक किया जाता रहेगा, इसमें डरने या घबराने वाली कोई भी बात नहीं है। कितना मुश्किल है इस बात को समझना कि कोई भी किसी से भी प्रेम कर सकता है। मेरे हिसाब से तो आपको अपने बच्चों पर गर्व होना चाहिए कि वो किसी से प्रेम करते हैं, और कोई है जो उन्हें प्रेम करता है।

मेरे घर में कभी मेरे पिताजी ने प्रेम के बारे में बात करने से इंकार नहीं किया। वो मेरी बातें सुनते थे। उन्हें पता था कि स्कूल में कोई लड़की है जिससे मुझे प्रेम जैसी अनुभूति होती है। कॉलेज में आया तब भी। मुझे दुःख होता है उन लोगों के लिए जो अपने साथी के बारे में अपने घर में बात करने से डरते हैं। उन पैरेंट्स के लिए भी दुःख होता है जो अपने बच्चों को प्रेम करना नहीं सिखा पाए, अपने बच्चों से प्रेम के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाए। लोग समाज से डरते हैं। वो अपनी ख़ुशियाँ और अपने बच्चों की ख़्वाहिशों को ‘लोग क्या कहेंगें’ और ‘रिश्तेदार क्या सोचेंगें’ के वज़न तले दबा देते हैं। कितने ही प्रेमी युगल केवल इसी बात से घबराकर शादी न करने का फ़ैसला कर जुदा हो जाते हैं क्योंकि वे अपने पैरेंट्स को दुःखी नहीं कर सकते, क्योंकि वे उनसे भी बहुत प्रेम करते हैं, फिर अरेंज मैरिज कर उम्र भर इस बात का मलाल करते हैं कि काश हिम्मत करके घर वालों को अपने प्रेमी या प्रेमिका के बारे में बता पाते तो आज उसके साथ ही होते…

लोग शादी कर लेते हैं, बच्चे पैदा कर लेते हैं लेकिन अपने साथी से प्रेम करना नहीं सीख पाते। माथे पर चूमने का सुख इन्हें कभी नहीं मिलता, गले लगने का सुकून ये कभी महसूस नहीं कर पाते… और फिर लोगों का यह कहना कि ‘आजकल का प्रेम’ तो कमरों तक सीमित रह गया है, असली प्रेम तो ‘हमारे ज़माने में’ किया जाता था। जी नहीं, हमारे ज़माने में भी असली प्रेम किया जाता है लेकिन आपने अपने समाज में असल प्रेम के लिए कोई जगह ही नहीं छोड़ी। पार्क में दिखने वाले प्रेमी युगल वो लोग हैं जिन्हें पूरे शहर में शान्ति से बैठकर चंद बातें करने के लिए कहीं जगह ही नहीं मिली। छुपकर रात में घण्टों फ़ोन पर बतियाने वाले ये वो लोग हैं जो खुलकर अपने पैरेंट्स के सामने अपने साथी से बात ही नहीं कर सकते, कमरे या फ़्लैट्स में मिलने वाले वो लोग हैं जो एक-दूसरे को प्रेम करना चाहते हैं लेकिन समाज को यह स्वीकार नहीं है। एक कमरे के भीतर एक लड़का-लड़की क्या कर रहे हैं, यह पूरे मोहल्ले की चिंता का विषय है, भले ही वो एक सुकून की चाय क्यूँ न साथ बैठकर पी रहे हों। मोहल्ले के ‘सी सी टी वी’ की नज़र हमेशा उनपर है। जिन्होंने कभी झील के किनारे सूरज को ढलते हुए अपने प्रेमी के साथ नहीं देखा, उन्हें सन-सेट्स वाली जगह ‘वहाँ तो सब कपल्स ही आते हैं’ की तरह ही लगती है। मैं ऐसे लोगो को बता देना चाहता हूँ, प्रेम करना एक बेहतरीन अनुभवों में से है। कभी अपनी भागती-दौड़ती ज़िन्दगी से थोड़ा समय लेकर अपने साथी की आँखों में देखकर उनसे कहो कि तुम उन्हें कितना प्रेम करते हो। प्रेम करने वालों से मैं कह देना चाहता हूँ कि तुम बिना किसी डर के अपने पैरेंट्स से अपने साथी के बारे में बात करो, उन्हें यह पता होना चाहिए कि तुम्हारा साथी तुम्हें कितना प्रेम करता है और तुम्हारी कितनी चिंता करता है। प्रेम करने के लिए दोनों पीढ़ियों को साथ आना होगा, समझना होगा, समझाना होगा, बातें रखनी होंगीं, बाते सुननी होंगी… बड़े ही प्रेम के साथ।

बस, मुझे और कुछ नहीं कहना!

मुदित श्रीवास्तव की कविता 'प्रेम अगर'

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मुदित श्रीवास्तव
मुदित श्रीवास्तव भोपाल में रहते हैं। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कॉलेज में सहायक प्राध्यापक भी रहे हैं। साहित्य से लगाव के कारण बाल पत्रिका ‘इकतारा’ से जुड़े हैं और अभी द्विमासी पत्रिका ‘साइकिल’ के लिये कहानियाँ भी लिखते हैं। इसके अलावा मुदित को फोटोग्राफी और रंगमंच में रुचि है।