मैं लिख लेता हूं प्रेम कविताएं
क्योंकि अभी नहीं है मेरे ऊपर कोई जिम्मेदारी
अभी मिल जाती है फुरसत
तुम्हें याद करने की
और इन्हीं कविताओं में
कई कई बार तुम्हें ढूंढ़ कर
करता हूं कोशिश
अपने खालीपन को भरने की
पर आज से कुछ दिन बाद
जब दबा हुआ रहूंगा
जिम्मेदारियों के बोझ तले
नहीं होगी जब फुरसत
एक पल की भी
खुद को स्थापित करने
की जद्दोजहद में
और धीरे धीरे स्मृतिपटल
से लोप होने लगेंगी
वो सारी यादें
जिनको आधार बनाकर
आज रच लेता हूं
प्रेम कविताएं
यदि उस वक़्त भी
खुद के अलावा
तुम्हें याद करते हुए
फुरसत के कुछ पल निकाल सकूं
और अगर लिख पाऊं
चार पंक्ति की भी
प्रेम-कविता
तब मैं मानूंगा
खुद को एक सच्चा प्रेमी
और एक प्रेम-कवि भी।
– दीपक सिंह चौहान ‘उन्मुक्त’