‘Prem Ki Jagah Anishchit Hai’, a poem by Vinod Kumar Shukla

प्रेम की जगह अनिश्चित है
यहाँ कोई नहीं होगा की जगह भी नहीं है

आड़ की ओट में होता है
कि अब कोई नहीं देखेगा
पर सबके हिस्‍से का एकांत
और सबके हिस्‍से की ओट निश्चित है

वहाँ बहुत दोपहर में भी
थोड़ा-सा अंधेरा है
जैसे बदली छाई हो
बल्कि रात हो रही है
और रात हो गई हो

बहुत अंधेरे के ज्‍यादा अंधेरे में
प्रेम के सुख में
पलक मूंद लेने का अंधकार है
अपने हिस्‍से की आड़ में
अचानक स्‍पर्श करते
उपस्थित हुए
और स्‍पर्श करते, हुए बिदा..

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Book by Vinod Kumar Shukla:

विनोद कुमार शुक्ल
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं! 1 जनवरी 1937 को भारत के एक राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में जन्मे शुक्ल ने प्राध्यापन को रोज़गार के रूप में चुनकर पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया! वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है।