‘Prem Ki Peeda’, a poem by Rupam Mishra
एक दिन तुम्हें आख़िरी ख़त लिखूँगी,
कभी अवसान हो तो उसका जबाब देना
जिससे मृत्युशय्या पर मेरी पीड़ा कम हो जाए
देह की मुक्ति के लिए
यही एक उपकार करना
तुम मेरे जीवन-भर के
सवालों के जवाब क़तई न लिखना
बस यह लिखना कि
कुछ पल के लिए ही सही
तुमने भी मुझे प्रेम किया
और यही प्रेम स्वीकृति
मेरी मुक्ति के क्षणों में
गऊदान व गंगाजल होगा
लाख भटकती हूँ धर्म और अर्थ में, पर
मैं जानती हूँ
प्रेम ही मुझे मुक्ति दे सकता है
और वही तारनहार है मेरा
कहते हैं कि मृत्यु की पीड़ा
बहुत कठिन होती है,
पर मिथक है यह
प्रेम की पीड़ा सबसे गहन होती है।
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