तुम्हारी हर बात को सच मानती रहीं

तुमने कहा, प्रेम में हो!
वह हँस पड़ी।

तुमने कहा, प्रेम एक भ्रम है!
वह सशंकित हुई।

तुमने कहा,
मैं प्रेमी हूँ
तुम पात्र

मैं पूज्य हूँ
तुम पूजक

मैं स्वामी हूँ
तुम याचक

उसने सहर्ष स्वीकार किया।

तुमने कहा, पानी पर चलो!
वह चल पड़ी।

तुमने कहा, आसमान छू लो!
उसने हाथ ऊँचे उठाए।

तुमने पीठ पर हाथ फेरा
वह पारदर्शी हुई

तुमने पूछा,
और, क्या-क्या कर सकती हो मेरे लिए?

उसने दूर… धरती के अंक में संकुचित होते सूरज को देखा
और धधकती आग का चुम्बन लिया।

जब तुम हल कर रहे थे स्त्री भूगोल के जटिल प्रश्न
वह प्रेम में किए वादे निभाती रही

ऐसी स्त्रियाँ
माघ के जाड़े को, जेठ की धूप में ओढ़ती हैं

बचाए रखतीं हर बार बसन्त, पतझड़ के आ जाने के बाद भी
प्रेमी के बाएँ पैर के अँगूठे को सीने से लगा उसे ईश्वर बनाती हैं।
उसकी पेशानी पर खिंची सबसे गाढ़ी रेखा पर अपना नाम लिखतीं
ये तुम्हारे अंधेरों को ढक
उजाला बनी औरतें
अंगारे में दबी राख पर नंगे पाँव चलती हैं।

लोहे की छन्नी से छाँट लेतीं, तुम्हारे हिस्से का कसैलापन
छोटी उँगली पर हिमालय का भार रखतीं
चाँद में देखतीं तुम्हारा चेहरा
वह छाँव देने को खड़ी रहतीं सूरज के विपरीत

प्रेम में डूबी औरतें,
हिसाब में बहुत कच्ची होतीं

रखती नहीं, तुम्हारे लिए ख़र्च की गई ज़िन्दगी का हिसाब
पढ़ती नहीं,
तुम्हारे सीने पर लिखे तमाम प्रेमिकाओं के नाम।

उनके माथे पर सदा चिपका रहा तुम्हारे होंठो का ताप
आँखों में नींद उबासियाँ लेती रही।

करवटों में लिपटी रही
तुम्हारी देह गंध

वह तमाम ज़िन्दगी
मेंहदी से हथेली पर तुम्हारा नाम लिखती रहीं
अधूरी नींद तुम्हारे क़िस्से कहती रहीं
वह व्यक्ति होकर भी व्यष्टि न रहीं
वह ताउम्र समष्टि रहीं।

प्रतिभा राजेंद्र की कविता 'चुल्हपोतनी होतीं तुम'

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प्रतिभा राजेन्द्र
निवासी: आजमगढ़, उत्तर प्रदेश कविताएँ प्रकाशित: जन सन्देश टाइम्स समाचार पत्र, सुबह सवेरे समाचार पत्र, सामयिक परिवेश पत्रिका, अदहन पत्रिका, स्त्री काल पत्रिका, स्त्री काल ब्लॉग, पुरवाई ब्लॉग स्वर्णवानी पत्रिका। अभिव्यक्ति के स्वर में लघुकथाएँ इंडिया ब्लॉग और प्रतिलिपि पर कहानियाँ प्रकाशित। ईमेल: [email protected]