‘Prem Mein Sabse Sameep’, a poem by Rashmi Kulshreshta
प्रेम में सबसे समीप तुम तब होते हो
जब तुम नहीं होते,
तुम्हारी कल्पनीय बातें सिहरन पैदा करती हैं
तुम्हारे अनछुए स्पर्श दे जाते हैं गुलाबी नील
तुम्हारी अनदेखी परछाईं ढँक लेती है कुछ यूँ
जैसे बादल नहीं ढँकता चाँद
घूँघट नहीं ढँकता चेहरा
ना सीना ढँकता है आँचल,
तुम्हारे ना होने में जो होना है
वैसा इस प्रेम में कुछ भी नहीं।