‘Prem’, poems by Pallavi Vinod

तुम प्रेम में प्रयोगवादी थे
हालाँकि मुझे छायावाद के सौंदर्य से अकुलाहट होती थी
फिर भी प्रेम में प्रायोगिकता मेरी समझ के बाहर था।

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तुम कहते थे नारी का प्रेम बहते पानी समान है
और पुरुष उसे अपने प्रेम से बाँध लेता है
मैं भी बंध गयी
जितना उपयोग उतनी ही मिली
कभी फ़सलों के निर्माण में
कभी मूर्तियों के निर्वाण में!

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तुम समानता की बातें करते हों
तुम अर्धनारीश्वर की बातें करते हो
पर अपना अर्धांग बनाते समय
मुझे बायां हिस्सा देकर शांत कर दिया!

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तुम्हारे लिए प्रेम,
अतिभावुक लोगों की कमज़ोरी था
और मेरे लिए दुनिया का सबसे सशक्त भाव
जिसकी उपस्थिति में अन्य सभी भाव
कमज़ोर पड़ जाते हैं।

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प्रेम कभी किसी को अपूर्ण नहीं रहने देता
और इस पूर्णता को पाने का माध्यम
अब तक अनश्वर है।।