‘Priya Ardhaangini’, a poem by Vishal Singh
प्रिय अर्धांगिनी
तुम चाहे
जितना भी सज-सँवर लो
तुम कभी भी
नहीं दिख सकोगी
साधारण से अधिक सुंदर,
तुम कभी भी नहीं बक सकोगी गालियाँ
कूल लड़कियों की तरह,
तुम कभी भी नहीं हो पाओगी
उतनी समझदार जितना तुम्हें होना चाहिये
प्रिय अर्धांगिनी
मैं हमेशा अनदेखा करूँगा
तुम्हारे निश्छल प्रेम को
तुम्हारे अनगिनत त्यागों को
तुम्हारे उस समर्पण को
जो मेरे प्रति सम्पूर्ण है
प्रिय अर्धांगिनी,
मैं यह भूल जाऊँगा कि
मेरा रूप औसत है,
मेरा वेतन औसत है,
वह हर एक गुण
जो एक इंसान की श्रेष्ठता को
निर्धारित करता है
मुझमें औसत है
लेकिन फिर भी
तुमको मुझमें दिखायी देगा
विश्व का सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति
और मैं तुमको समझूँगा
मेरे गले में बँधी हुई घण्टी!