मेरा बाप नंगा था
मैंने अपने कपड़े उतार उसे दे दिए
ज़मीन भी नंगी थी
मैंने उसे
अपने मकान से दाग़ दिया
शर्म भी नंगी थी, मैंने उसे अपनी आँखें दीं
प्यास को लम्स दिए
और होंठों की क्यारी में
जाने वाले को बो दिया
मौसम चाँद लिए फिर रहा था
मैंने मौसम को दाग़ देकर चाँद को आज़ाद किया
चिता के धुएँ से मैंने इंसान बनाया
और उसके सामने अपना मन रखा
उसका लफ़्ज़ जो उसने अपनी पैदाइश पे चुना
और बोला!
मैं तेरी कोख में एक हैरत देखता हूँ
मेरे बदन से आग दूर हुई
तो मैंने अपने गुनाह ताप लिए
मैं माँ बनने के बाद भी कुँवारी हुई
और मेरी माँ भी कुँवारी हुई
अब तुम कुँवारी माँ की हैरत हो
मैं चिता पे सारे मौसम जला डालूँगी
मैंने तुझमें रूह फूँकी
मैं तेरे मौसमों में चुटकियाँ बजाने वाली हूँ मिट्टी क्या सोचेगी
मिट्टी छाँव सोचेगी और हम मिट्टी को सोचेंगे
तेरा इंकार मुझे ज़िन्दगी देता है
हम पेड़ों के अज़ाब सहें
या दुःखों के फटे कपड़े पहनें!