हरमन हेस की किताब ‘सिद्धार्थ’ से उद्धरण | Quotes from ‘Siddhartha’, a book by Hermann Hesse


“ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु ज्ञानी पुरुष के सिवा, शिक्षा के सिवा, और कोई नहीं है।”


“नदी से आदमी बहुत कुछ सीख सकता है। मैंने यह भी नदी ही से सीखा है कि सब कुछ वापस आ जाता है।”


“सुन्दर और लाल है कमला के होंठ, लेकिन उन्हें कमला की इच्छा के बिना चूमने की कोशिश करो, तुम उनसे मधुरता की एक बूँद भी नहीं पाओगे—हालाँकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि मिठास कैसे बख़्शी जाए।”


“मुझे वस्त्र और पैसे चाहिए, बस। ये आसान लक्ष्य हैं जिनसे नींद नहीं ख़राब होती।”


“जब किसी पत्थर को पानी में फेंका जाता है, वह पानी के तल तक सबसे जल्दी वाला, सबसे छोटा रास्ता खोज लेता है।”


“हर आदमी जादू कर सकता है, हर आदमी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है, अगर वह सोच सकता है, प्रतीक्षा कर सकता है, उपवास रख सकता है।”


“प्रेमियों को प्रणय-लीला के बाद एक-दूसरे की सराहना किए बिना, जीते जाने और जीतने के बिना, अलग नहीं होना चाहिए, ताकि सन्तुष्टि या उदासी का कोई भाव न पैदा हो, न दुरुपयोग करने या दुरुपयोग की जाने की भयावह भावना।”


“मैं तुम्हारी तरह हूँ। तुम भी प्रेम नहीं कर सकतीं, वरना तुम कला की तरह प्रेम का अभ्यास कैसे करतीं?”


“हर चीज़ जो अंत तक भोगकर अंततः समाप्त नहीं की जाती थी, दोबारा होती थी और वही-वही दुःख फिर से सहे जाते थे।”


“अपने घाव को अपने सुनने वाले के सामने प्रकट करना वैसा ही था जैसे उसे नदी में धोना जब तक कि वह ठण्डा होकर नदी से एकमेक न हो जाए।”


“खोजने का मतलब है : एक लक्ष्य का होना; लेकिन पाने का मतलब है मुक्त होना, ग्रहण करने योग्य होना, किसी लक्ष्य को सामने न रखना।”


“प्रज्ञा या बुद्धि सम्प्रेषित नहीं की जा सकती। जो बुद्धि एक बुद्धिमान व्यक्ति सम्प्रेषित करने की कोशिश करता है, वह हमेशा सुनने में मूर्खता जान पड़ती है।”


“हर सत्य में उसका उलट भी उतना ही सच होता है। उदाहरण के लिए, कोई सत्य शब्दों में तभी व्यक्त किया और घेरा जा सकता है अगर वह एकतरफ़ा हो। हर बात जो शब्दों में सोची और व्यक्त की जाती है, वह एकपक्षी है, केवल अर्द्ध-सत्य; उसमें सम्पूर्णता, पूरापन, एकता का अभाव होता है।”


“हर पाप पहले ही से अपने भीतर क्षमा लिए चल रहा होता है, सभी बच्चे सम्भावित बुड्ढे हैं, सभी शिशुओं के भीतर मृत्यु मौजूद होती है, सभी मरने वालों के भीतर अनंत जीवन।”


“शब्द विचारों को बहुत अच्छी तरह व्यक्त नहीं करते। जैसे ही उन्हें व्यक्त किया जाता है, वे तत्काल कुछ अलग बन जाते हैं, थोड़े-से विकृत, थोड़े-से मूर्खतापूर्ण।”


हरमन हेस की कविता 'कितने बोझिल हैं दिन'

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हरमन हेस
जर्मन उपन्यासकार, कहानीकार और कवि!