‘Raja Aur Rank’, a poem by Sushma Saxena

मालकिन बड़ी अच्छी है
बड़ी सहृदय
इतना बड़ा व्यापार चलाती है,
करोड़ों में खेलती है,
विरासत में मिला व्यवसाय दमख़म से चलाती है।
मुनाफ़ा है,
शोहरत है,
देखने में भी भली
ख़ूबसूरत युवती है।

मेकअप है,
रौनक है,
ऐश्वर्य है,
परिष्कार है।

राजकुमारियों जैसा ही व्यवहार है।

मगर, बड़ी सहृदय है,
जी खोल के देती कर्मचारियों को उपहार।
ओह! उनका भी तो तीज -त्योहार।

बड़ी सहृदय है मालकिन,
देखो, सब नौकरों को मानती है बराबर,
नहीं करती कोई भेदभाव, कोई अंतर।

और आज तो ग़ज़ब कर डाला,
जब सब नाचे कर्मचारी,
तो डान्स फ़्लोर पर उतर आयी राजकुमारी।

नाची सब के साथ, भाई, कितना बड़ा हृदय है।
देखो, अख़बार, सबने गुण गाए हैं,
परजों के बीच राजकुमारी को देख, सभी अघाये हैं।
ऐसे ही थोड़े ना बनते हैं,
उद्योग-व्यापार के सफल नेता,
‘बिजनेसमैन ऑफ दि इयर… बिजनेसवूमन ऑफ दि इयर…’

क़दर करते हैं, भाई, इंसान की क़दर।
टीम की क़दर…
हाँ… हाँ… वही मातहतों की टीम,
कर्मचारियों और सेवकों की
वही जिनको राजकुमारी ने दिया रोज़गार…
एक ख़ुश कार्यस्थल, एक ख़ुश व्यापार बनाने में,
नेतृत्व के गुण तो लगते हैं…
इतना आसान थोड़े ही है!
देखो, कितनी विशालहृदया,
सिंहासन से उतरकर नाची राजकुमारी,
और फिर जा बैठी सिंहासन पर।
क्या ग़ज़ब है, राजकुमारी!

ख़ुश होकर और काम करेंगे,
प्रोत्साहित कर्मचारी।
इक्कीसवीं सदी के राजा और रंक हम।