‘Raushni’, a poem by Poonam Sonchhatra
ये समय
ये कठिन समय
रात्रि के अन्तिम पहर का है
जब निशा ने
अपनी गहनतम चादर से
पूरे संसार को ढक रखा है..
मैं सभी खिड़कियों को खोल
कमरे के कण-कण में
सितारों की रौशनी भरना चाहती हूँ
ये माना
पूनम की इस रात
चाहनाओं के चाँद पर
अपशकुन का ग्रहण लगा हुआ है
लेकिन
मेरे मन के आकाश में
उम्मीदों के सितारे
अब भी जगमगाते हैं..
सुनो..
मैंने उदास शामों से
एक गहरा भूरा रंग
चुराया है
यक़ीन जानों
वह भूरा रंग
धूमिल कर देगा
इस श्वेत-श्याम परिदृश्य को
और जब हर ओर
न कुछ सफ़ेद रहेगा
और न ही काला
तब मैं इन सितारों की
एक लम्बी माला बनाऊँगी
और पूरे कमरे को
इस चमकदार माला से सजाकर
रौशन करूँगी..
कमरे के हर कोने में
ये सितारे
यूँ जगमगायेंगे
जैसे कि किसी बच्चे की उन्मुक्त हँसी गूँजती है..
मुझें सम्भालने हैं
इस रौशनी के बीज…
मुझे विश्वास है कि
रौशनी के ये बीज
जब बोये जाएँगे
और जीवन के खेत में इनकी
फसलें लहलहाएँगी
ये जगमगाते, महकते और रसभरे
फलों से फलकर
इस पूरी दुनिया को
रौशनी, महक और रस से
सराबोर कर देंगे…
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