गंगा घाट पर
खेलते खेलते
जब हम डूबने से बच गए थे
तुम्हें याद है
हम कितना हँसे थे
वहीं रेत पर लेट कर
बहुत देर तक हँसते रहे थे
और उन अंकल के घर
अमरूद की चोरी
कितनी महंगी पड़ी थी,
घर से भाग जाने के इरादे से
हम स्टेशन तक गए थे
और वहीं पड़ी बेंच पर
सो गए थे
वो अंकल अभी ज़िंदा हैं
और वो गंगा किनारे
सौ वर्ष पुराना खोखला पेड़ भी
वैसे ही खड़ा है
जब भी वहाँ से गुज़रता हूँ
तुम्हारा वादा याद आता है
लेकिन
ये जो तुम कहते हो
‘सब कुछ ठीक रहा तो
आओगे’
तो मैं चाहता हूँ
कि खुदा करे सब कुछ ठीक रहे
और तुम ना आओ…