ये सूखे बदन और ये बीमार बचपन
जवाँ हैं अपाहिज, बुढ़ापा अजीरन
ये भारत की जनता, ये जनता का जीवन
है कैसा ये जीवन ज़रा ये बताओ।
ये बच्चे नहीं जिनको रोटी मयस्सर
ये महिलाएँ भूखी रहें जो उमर-भर
जो मज़दूर मेहनत करें भूखे रहकर
ये बीमार क्यूँ न पड़ें ये बताओ।
ये नाली में बहती हुई जो लहर है
ये पानी नहीं, इसको पीना ज़हर है
मगर इस पे जीता यहाँ हर बशर है
ये पीकर जिएँ कैसे हमको बताओ।
ये कीचड़, ये दलदल, ये घूरे, ये नाले
ये इंसाँ को ज़िन्दा निगल जानेवाले
ये घर ऐसे हैं जैसे मकड़ी के जाले
जिएँ इनमें कैसे ये हमको बताओ।
यहाँ साँस लेने को तरसे है बचपन
यहाँ ज़िन्दा कहने को तरसे है बचपन
यहाँ एक टीके को तरसे है बचपन
है बचपन ये कैसा हमें ये बताओ।
जो रोगों को नारों से चाहें भगाना
उन्हें जा के ये राज कोई बताना
कि पहले ग़रीबी पड़ेगी हटाना
उठो जाके ये बात उनको बताओ।
बराबर का उपचार सबको दिलाना
दवाओं को जनता की ख़िदमत में लाना
ग़रीबों के नज़दीक विज्ञान जाना
उठो जाके ये बात उनको बताओ।