‘Rote Hue Achchhe Lagte Ho’, a poem by Amandeep Gujral
ज्ञात है मुझे
रोका गया है तुम्हें रोने से, हमेशा!
बचपन यह सुनने में बीता
‘छी:! लड़का होकर रोता है’
इस तरह रोने पर लगा दिया गया अंकुश
तुम्हारे कानों में ब्रह्मवाक्य की तरह पिरोया गया
‘बहादुर आदमी रोते नहीं हैं’
और तुम्हें दुःखी होने और ख़ुश होने के
भाव से कर दिया गया दूर
ताकि तुम रह सको पुरुष।
तुम्हें लोगों की नज़रों में कमजोर नहीं होना था
सो तुमने अश्रुओं के वेग को
कभी हावी नहीं होने दिया बहादुर आदमी होने पर,
लकीर जो खींच दी गई स्त्री और पुरुष की
आँखों के मध्य
उसे पार करने में हिचकिचाहट महसूस हुई तुम्हें
पर, सच कहूँ तो
तुम मुझे रोते हुए बहुत अच्छे लगते हो
चार चाँद लग जाते हैं
तुम्हारे पौरुष पर
क्योंकि
जिन आँसुओं को स्त्रियोचित मान कर
तुम्हें विमुख कर दिया गया उसके भाव से
उन आँसुओं को बहा
नारी का अद्भुत गुण समाहित कर लेते हो
मिल जाता है तुम्हें शक्ति का साथ…
बन जाते हो अर्धनारीश्वर
और
चाँद सुशोभित हो जाता है
तुम्हारे कपाल पर।
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