मन मारकर जीतीं औरतें नहीं कह पातीं अपना दर्द
शीत मारे मन को फंदे दर फंदे फँसा देती हैं सलाइयों में
ऊन की गर्माहट के साथ लिपटा मन पिघल उठता है उंगलियों में
पसीज उठी हथेलियों को झट आँचल में रगड़
पोंछ देती हैं दर्द के तमाम क़तरे
तुम ख़ूब देख सकते हो इन खांटी घरेलू औरतों का आँचल
तमाम रंगों को छिपाते-छिपाते कुछ मटमैला-सा हो उठता है
गोद में पड़े ऊन के गोले से लिपट अपना दर्द बाँटता है आँचल
दरयाफ़्त करता है ज़रा अधिक गर्माहट की
रूमाल की तरह इस्तेमाल होती ये औरतें
ख़ुद को धोती हैं अक्सर खारे पानी से
एक जगह बैठी गीली आँखों में हँसती ये
रंगीन पतंगों-सी उड़ती हैं एक निश्चित दूरी तक
दिन ढलते ही खींच ली जाती है डोर
मांझे में लिपटे तमाम ख़्वाब इंतज़ार करते हैं सुबह का
सुबह एक बार फिर मुक्त करती है पतंगों को
भीतर बाहर के शीत से कँपकँपाई औरतों को मिलती है
थोड़ी-सी धूप और अपनी जैसी तमाम शीत सताई औरतों का साथ
साथ की गर्माहट में सूख जाते हैं तमाम आँचल
आपस में सलाइयाँ बदलते-बदलते ये बदल लेती हैं मन भी
भीतर की कड़वाहट को अचार के मसाले में मिलाकर
वापस कर देती हैं घृणा के शब्द उगाने वाली उन्हीं जीभों को
जो हर रोज़ ख़ुद में पैदा करती हैं विष
इन विष भरी जीभों पर संसार के द्वेष पाते हैं प्रश्रय
द्वेष भरे इस विष के वमन से आपादमस्तक सनी ये औरतें
पवित्र हो जाती हैं अपने अंतस की शीतलता को ख़ुद पर छिड़ककर
विष-वमन को समेट बुन देती हैं पावदान
द्वार पर बिछा मुस्कराती हैं सूखे होठों में
पैरों में अपना ही कलुष लिपटाए घूमता है पुरुष
स्त्रियाँ अपने कुचले हृदय को बो देती हैं क्यारियों में
रक्तिम पुष्प को जूड़े में सजाकर आश्वस्त करती हैं ख़ुद को
कि स्त्री का स्वभाव है सृजन में रत रहना
अपना पूरा जीवन उकेर देती हैं क्रोशिए, सलाइयों से निकले बूटों पर
रोटियों के साथ रोज़ तवे पर सिकतीं
गर्म देह और सर्द आत्मा वाली ये औरतें
अपना जीवन दूसरों की देहों में जीती हैं
इन सबके बीच वे भर रही होती हैं दृढ़ता
अपनी बेटियों के नाज़ुक हाथों में
और अपने आत्मविश्वास के तंतुओं से बुनती हैं
बेटी के कोमल मन के लिए सुरक्षा-कवच
वास्तव में नम आँचल वाली माँओं के प्रतिरोध का
सर्वाधिक सशक्त प्रमाण हैं उनकी मुखर बेटियाँ।