अनुवाद: शमशेर बहादुर सिंह
मगन मन पंख झड़ जाते यदि
और देखनेवाली आँखें झप जाती हैं
शाहीन के अंदर पानी नहीं रहता
उस अमृत जल को पी के भी जो
आँसुओं की धार है
दूसरे पहर की चमक में यदि
अगली रात की झलक है
और रात की कोख भी सूनी
जैसे मछुआरे का झावा
ये सारा मातम है यदि इसीलिए
कि मर जाएँ पर सच ही सच बताएँ
तो मर जाना ही बेहतर है उसे बता कर
कान में रुथ के..