पत्नी के बचत खाते में जीवन बीमा की परिपक्वता के साढ़े तीन लाख रुपये की राशि आनी थी। जो कि उसकी खुद की बचत थी। मैं बाबू जी के व्यापार में हाथ बंटाता था लिहाजा सभी लेन देन से वाकिफ था। एक दिन मैंने बाबूजी से कहा कि पत्नी के खाते में उसकी बचत के साढ़े तीन लाख रुपये आने हैं, आप कहें तो अपनी फर्म के खाते में ट्रांसफर कर दूं। हम लोग जो दूसरों से ब्याज पर पैसा लेते हैं वो कम लेने पड़ेंगे और बैंक ब्याज की दर से उसको ब्याज दे देंगे। इस प्रकार घर का पैसा घर में ही रहेगा। बाबूजी थोड़ा सोचकर बोले- “ठीक है”। लिहाजा जैसे ही पत्नी के खाते में पैसे आये उसको फर्म के खाते में ट्रांसफर कर दिया। कुछ महीने बीतने पर पत्नी ब्याज के पैसे मांगने लगी। मैं “घर में ही हैं, दे देंगे” कहकर टालता रहा। दरअसल मेरी हिम्मत भी नहीं थी कि बाबूजी से पैसे मांग सकूं। कुछ समय और बीतने पर वो कहने लगी- “इससे अच्छा होता मैं इन पैसों की एफ़डी ही करवा लेती, अब तो मुझे ब्याज क्या मूल पर ही खतरा दिखाई दे रहा है।” मैंने फिर उसको सब्र रखने को कह दिया।
कुछ दिनों बाद बड़ी दीदी के यहां पटना जाना हुआ। जिम्मेदारियों का बोझ उम्र बढ़ने के साथ-साथ आपको रिश्तों के और करीब ले आता है। फिर बड़ी दीदी ने तो मेरे गाढ़े वक़्त में मेरी मदद के अलावा सहारा और इतना आत्मबल दिया कि उनमें मुझे माँ का रूप दिखाई पड़ता था। बड़ी दीदी के यहां रुकने के दौरान एक दिन उनसे बातों बातों में परिवार की आर्थिक स्थिति पर चर्चा होने लगी, व्यापार की बात होने लगी। लेनदेन की बात बताते समय मेरे मुंह से पत्नी के साढ़े तीन लाख रुपये और उसके ब्याज की बात भी निकल पड़ी। कुछ दिन उनके पास रुकने के बाद मैं वापस आ गया।
एक दिन सुबह-सुबह मुझे बाबूजी के व्यवहार में परिवर्तन सा दिखाई पड़ा, वे कुछ नाराज़ भी लग रहे थे। उन्होंने बैंक का एक साढ़े तीन लाख का चेक मेरी पत्नी के नाम काटकर स्टाफ को पत्नी के बचत खाते में जमा करवाने को भेज दिया और आफिस में मेरी तरफ पीठ करके बैठे रहे। थोड़ी देर बाद वो बड़े जीजाजी को फोन करके कहने लगे हमारे घर का फैसला कर दीजिए। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि बात क्या है जबकि छोटे भाई से मेरा किसी तरह का विवाद भी नहीं हुआ था। दोपहर में मैंने बड़ी दीदी को फोन किया और पूछा कि क्या तुमने वो साढ़े तीन लाख वाली बात घर में किसी को बताई थी तो दीदी बोली- “अम्मा से ऐसे ही बात चल पड़ी तो मैंने अम्मा को बताया था।”
मैंने घर की वर्तमान स्थिति से अवगत कराते हुए कहा- “लगता है अम्मा ने बाबूजी को बता दिया है और घर में तनाव है।”
दीदी अपने को दोषी मानने लगी तो मैंने समझाया कि इसमें तुम्हारा दोष नही है किंतु आज बाबूजी जिस तरह से आफिस में मेरी तरफ पीठ करके बैठकर मेरी उपेक्षा कर रहे हैं, वो पीड़ादायक है। मुझे इतना दुःख तब भी ना होता अगर वो पत्नी के पैसे वापस ना करते। परन्तु उससे ज़्यादा दुख आज अपनी उपेक्षा पर हो रहा है। दीदी मुझे सांत्वना देने लगी अपने को दोषी मानकर बोली कि मैं अम्मा को समझाऊंगी। दो चार दिन की अनबन के बाद समय के साथ बाबूजी भी ठीक हो गए और मैं भी उस बात को भूल गया।
कुछ दिनों बाद एक दिन बाबूजी ने मुझे बुलाया और कहा कि तुमसे एक बात कहनी थी। मुझे पता है कि तू मेरी बात नहीं मानेगा तब भी कहे देता हूँ। मैंने कहा- “कहिये क्या बात है।”
उन्होंने कहा- “वो जो तुम्हारी पत्नी के साढ़े तीन लाख रुपये थे, उनको दुबारा फर्म में ट्रांसफर कर दो।”