‘Saans’, a poem by Vishal Andhare
कुछ साँसें छोड़कर जा रहा हूँ…
एक-एक निकालकर
ख़र्च कर देना
जब मेरी याद से
तुम्हारी साँस फूल जाए तब
कुछ साँसें गर्म भी हैं…
सर्दी के दिनों में
ओढ़ लेना उन्हें
यादों के कोहरे से
निकलने के काम आएँगी
कुछ साँसें भारी भी हैं…
यादों की तपिश से
बढ़ जाए जब
गर्म हवा
तब
इनकी ज़रूरत होगी तुम्हें
और वो आख़िर में
बची है
जो आधी-अधूरी साँस
उसे जोड़ लेना
प्रेम के अंतिम पल
तुम्हारी अधूरी साँस से
और
तब वो पूरी एक साँस भेज
देना मुझे
तब शायद हमारे मिलन की
अधूरी कहानी को
पूर्णत्व मिल जाए…