‘Saazish’, a poem by Anupama Jha
मिलती-जुलती इच्छाएँ
मिलती-जुलती भावनाएँ
देती हैं जन्म
कुछ आशाओं को
कुछ परिभाषाएँ जाती हैं मिल
जीवन से, जीवन में
फिर होता उत्पन्न
एक रिश्ता- रूहानी-सा।
कुछ अनकहे को समझ लेना
कुछ अनलिखे को पढ़ लेना
और जाना जुड़
ऐसे ही नहीं होता।
तय होता है -सब कुछ
जन्म, परिणय, मृत्यु से परे
एक बन्धन
जो बन्धते हैं
हर जन्म में
कभी तारे बनकर
कभी हम-तुम बनकर।
सब साज़िश है
तयशुदा आसमानी साज़िश
सारे ग्रह-नक्षत्रों ने की है मिलकर
एक आसमानी साज़िश
आकाश गंगा को साक्ष्य बनाकर
हमें-तुम्हें मिलाकर
है न?