मेरे भीतर शाम
सुबह की तरह थी
और सुबह थी रात की तरह
और जो तरल बहा था मेरे भीतर
वह ज़िन्दगी थी
निर्जन एकांत में मैं
गीत गा रहा था
यह गीत मेरा नहीं था
ज़िन्दगी की तरह उधार का था
मैं जानता था
चुप्पी से बेहतर है गाना
मगर बेसुरा नहीं
पर मैं सुर कहाँ से लाता
दिव्यता कहाँ से पाता
इसलिए मैंने लिया उधार
एक गीत जो तुम्हारा था
मैं स्वीकार करता हूँ
यह मेरा गीत नहीं है
और इस स्वीकार के बाद
कोई अपराध बोध नहीं है मुझमें
सच ने मुझे मुक्त किया है!
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