सड़क के दो विपरीत छोरों पर दो चुप्पियाँ ठहरी हैं
ब्रह्मांड की सबसे खूबसूरत लड़की।
ब्रह्मा की सबसे सुरम्य रचना।
दूसरे छोर पर
पराये शहर का सबसे बेतरतीब लड़का
इक बेतहज़ीब दरवेश
पतझड़ उगा काला झुलसता चेहरा
इस फ़ासले पर कच्ची सड़क स्मृतियों की उनींदी में है
और हमारा प्रेम बिखरे हुए कंकड़ हैं
सूरज कुछ वर्ष पश्चात शापित होकर सूख जाएगा
पक्षपात के आरोप में
अपने ताप से प्रेम को जलाने के आरोप में
सड़क के छोर पर दरवेश की आँखो में चुभने के लिऐ
ब्रह्मा की सबसे सुरम्य रचना को देखने में अवरोधक बनने के लिए
ईंट गारे के खड़े मकान ढह जाएँगे
परन्तु!
ब्रह्मा की सुरम्य रचना,
उफ़क़ पर वैसे ही राजकुमारी सरीखे खड़ी रहेगी
मेरी कविताओं की छत पर।
अनवरत।
ये निरंतर चलने वाली प्रकिया होगी
बिना स्पर्श के हर युग में प्रेम दो किनारों पर मिलेगा,
आत्मिक आंलिगन, अतीत स्मृति
औ’ चंद आँसुओं की नमी ही वजह होगी
सृष्टि के बचे रहने की।