सड़क की छाती पर कोलतार बिछा हुआ है। उस पर मज़दूरों के जत्थे की पदचाप है। इस दृश्य के उस पार उनके दुख-दर्द हैं। उनकी मायूसियाँ हैं। उनकी हताशाएँ हैं। सड़क पर साइकिल की घंटियों की आवाज़ है। कार के हॉर्न का शोर है। कूड़ा खाती गायों के रम्भाने के स्वर हैं। ताँगे के घोड़े की टाप की आवाज़ है। स्कूल जाते बच्चों की मासूम खिलखिलाहट की स्वर-लहरियाँ हैं।

मास्क लगाए हुए लोग सड़क पर सहमे-से आ-जा रहे हैं। लोगों के ज़हन में कोरोना वायरस का डर है। डर की तह में मौत कुंडली मारे बैठी है।

बेज़ुबान सड़क जहाँ बिछी है, वहीं पड़ी है। एक सिगरेट की फेंकी गई बची हुई ठूँठ सड़क को कश-कश पी रही है।

सड़क पर कूड़ा बीनने वाला बहती नाक वाला एक बच्चा रोता हुआ चला जा रहा है। यह देखकर हवा थोड़ी थम गई है। सूरज थोड़ा मद्धिम हो गया है। आकाश की नीलिमा थोड़ी कम हो गई है।

सड़क के ऊपर आकाश है। आकाश में पंछी हैं। ज़मीन पर उनकी परछाइयाँ हैं। उनके परों में उड़ान है। दिल में आकाश नापने की तमन्ना है। वे अपनी साँसों की स्याही से उमंग लिख रहे हैं।

सड़क के एक ओर आलीशान मकान हैं। पर ये मकान खूँटों से बँधे हैं। इनमें रहने वाले जीव कोरोना-काल की उपज हैं।

सड़क के दूसरी ओर मैदान है। मैदान में हरी घास है। घास में कीड़े हैं। एक चिड़िया इन कीड़ों को मनोयोग से खा रही है। खाते हुए चहचहा रही है। सड़क चिड़िया की ख़ुशी देखकर मोम हुई जा रही है।

सड़क पर कुछ साइकिल वाले दूधिये दूध के बड़े बर्तन लादे चले जा रहे हैं। उन बर्तनों में से छलकते दूध के अभिषेक से सड़क तृप्त हुई जा रही है।

सड़क पर एक युवक की लाश लिए कुछ लोग जा रहे हैं। दृश्य से परे बेरोज़गारी की वजह से की गई एक आत्महत्या जा रही है। कुछ धर्म-भीरु लोग लाश को प्रणाम कर रहे हैं। यह देखकर लाश विद्रूपता से मुस्करा रही है।

सड़क पर एक लगभग ख़ाली ट्रैक्टर लिए एक किसान चला जा रहा है। ट्रैक्टर में फ़सल के नाम पर नहीं-बराबर उपज है। सूखे की वजह से इस बार सारी फ़सल बर्बाद हो गई है। तभी उसका मोबाइल फ़ोन बजता है। उधर गाँव से उसकी बीवी बोल रही है। उसका भाई भी किसान था। उसने आत्महत्या कर ली है। ट्रैक्टर पर बैठे किसान की आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है। आँखों का अँधेरा और सड़क का कोलतार आपस में घुल-मिलकर एक स्याह कोलाज बना रहे हैं।

सड़क को स्कूल जाते मासूम बच्चे अच्छे लगते हैं। उनके हाथ में पृथ्वी और जेब में सूरज है। उनकी निश्छल आँखों में डूबकर सड़क सब कुछ भूल जाती है। सड़क को गीत गाती घसियारनें अच्छी लगती हैं। सड़क को कॉलेज जाती शोख़ लड़कियों की खनकती खिलखिलाहटें अच्छी लगती हैं। दिन का यह नरम सिरा पकड़कर सड़क ख़ुश हो जाती है।

अब रात का समय है। कुछ दूरी पर सड़क पर एक दुर्घटना हो गई है। शराब के नशे में धुत्त एक कार ने एक अभागी साइकिल को कुचल दिया है। सड़क की छाती पर कोलतार है। कोलतार पर मृतक की क्षत-विक्षत देह पड़ी हुई है। वहाँ मृतक का ख़ून बिखरा हुआ है। सन्नाटा जैसे शोक-गीत गा रहा है। नशे में धुत्त कार का ड्राइवर वहाँ से भाग खड़ा हुआ है। सड़क यह दारुण दृश्य देखकर विलाप कर रही है। उसे उसकी पुरानी स्मृतियाँ याद आ जाती हैं। वह छटपटाकर फिर से बल खाती पगडंडी बनकर अमराइयों में खो जाना चाहती है। सड़क की छाती पर बिछा कोलतार इस त्रासद दृश्य से डर गया है। कोलतार के मन में आ रहा है कि काश उसके पंख लग जाते और वह इस त्रासद दृश्य से दूर नील गगन में उड़कर कहीं खो जाता…

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सुशांत सुप्रिय
(जन्म: 28 मार्च, 1968) सुपरिचित कवि, कथाकार व अनुवादक। प्रकाशित कृतियाँ: कथा-संग्रह: हत्यारे, हे राम, दलदल, ग़ौरतलब कहानियाँ, पिता के नाम, मैं कैसे हँसूँ, पाँचवीं दिशा। काव्य-संग्रह: इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं, अयोध्या से गुजरात तक, कुछ समुदाय हुआ करते हैं। अनूदित कथा-संग्रह: विश्व की चर्चित कहानियाँ, विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ, विश्व की कालजयी कहानियाँ, विश्व की अप्रतिम कहानियाँ, श्रेष्ठ लातिन अमेरिकी कहानियाँ, इस छोर से उस छोर तक। ई-मेल: [email protected]