आत्मा इतनी थकान के बाद
एक कप चाय माँगती है
पुण्य माँगता है पसीना और आँसू पोंछने के लिए एक
तौलिया
कर्म माँगता है रोटी और कैसी भी सब्ज़ी
ईश्वर कहता है सिरदर्द की गोली ले आना
आधा गिलास पानी के साथ
और तो और फ़क़ीर और कोढ़ी तक बन्द कर देते हैं
थककर भीख माँगना
दुआ और मिन्नतों की जगह
उनके गले से निकलती है
उनके ग़रीब फेफड़ों की हवा
चलिए मैं भी पूछता हूँ
क्या माँगूँ इस ज़माने से मीर
जो देता है भरे पेट को खाना
दौलतमन्द को सोना, हत्यारे को हथियार,
बीमार को बीमारी, कमज़ोर को निर्बलता
अन्यायी को सत्ता
और व्याभिचारी को बिस्तर
पैदा करो सहानुभूति
कि मैं अब भी हँसता हुआ दिखता हूँ
अब भी लिखता हूँ कविताएँ।
उदय प्रकाश की कविता 'उत्कृष्टता'