भूल जाओ
किस जाति, किस वर्ण को
कहाँ से पैदा किया
ब्रह्मा ने
और देखो अपनी गंदली आँखें धोकर
क्या संयोजन है प्रकृति का?
पैर! पूरे बदन में
सबसे बलशाली हैं
जिराफ़ के पिछले पैरों की लात मात्र से
शेर ढेर हो जाए ,
गधे की लात इंसान को बेसुध कर दे,
समय और
इवोल्यूशन ने मानव में कर दिया
हाथ-पैर का स्पष्ठ भेद
लेकिन पैर फिर भी रहे बल की कोठरी।
बल जिसे प्रकृति ने दिया सबसे नीचे का स्थान।
जननांगों को रखा बल से ऊपर
बल से ऊपर है सम्भोग,
प्रजनन एवं मल भी
जो चीखकर कहता है यह कि
प्रकृति बलात्कार विरोधी है
व बल मल से भी बदतर हो सकता है
जननांगों से ऊपर रखा पेट
ऊपर रखी ‘चाह’ जो सकारात्मक पहलू में बन जाती है
जिजीविषा
व नकारात्मक होकर बनती है
लालच व अहंकार।
ऊपर रखी गई भूख,
मूलभूत आवश्यकता
रोटी और पानी
जहाँ से मिले वो ऊर्जा
जो रख सके प्राणी को जीवित।
उपस्थित प्राणियों के जीवित रहने को
प्रकृति ने माना पहले
नए सृजन से भी।
पेट से ऊपर रखा हृदय
करुणा, प्रीति
दया व भावनाओं का बोध
और हृदय से ऊपर रखा मस्तिष्क
जो देता है सत्य का बोध
जो उत्पन्न करता है ज्ञान का बोध
जो रखता है सारी शक्तियों को अपने बस में
जो रखता है सभी के मध्य तालमेल।
ठीक इसी क्रम में माँ की कोख से
पैदा होता है इंसानी शिशु
सिर से पैर तक।
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