‘Sambal’, a poem by Mohit Payal
ज़िन्दगी प्रश्न पूछती है
कभी कठोर, कभी अनुत्तरदायी
लेकिन रास्ते भी सुझाती है
सरल से पर अनखोजे हुए
ज़िन्दगी का स्वभाव बिल्कुल मेरे पिता-सा है
वो भी सिर्फ़ पूछते हैं बताते नहीं
वो पूछते हैं कि तुम कैसे हो?
बताते नहीं कैसा होना चाहिए!
जैसे नदी का बहाव
उसके स्रोत पर निर्भर है
मेरा अभिव्यक्त और स्वभाव
मेरे पिता की देन है
परन्तु हम एक से नहीं
मैं एक उप नदी सा हूँ उनका
उनका जल और बिम्ब लिए
पर अपनी राह ख़ुद चुनने के लिए आज़ाद
पर जैसे हर एक पीढ़ी के बाद
नदी अपनी राह बदलती है
मैंने भी अपने पिता को
समय के अनरूप ढलता हुआ पाया है
कभी बाढ़ का मौसम हो
या कभी सूखे का वक़्त
मैंने हमेशा उन्हें सहज ही देखा है
जल-सी सरलता लिए
यह सरलता अब उनके चेहरे की लकीरें बन बैठी है
अब ज़िन्दगी जब भी कोई कठिन सवाल पूछती है
मैं उनके चेहरे की ओर देखता हूँ
और उनकी सरल-सी मुस्कान मेरा सम्बल बन जाती है!
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