‘Sankrman Kaal’, a poem by Rahul Boyal
संक्रमण से जूझते हुए
देश के लिए
सरकार के पास
नहीं है कोई योजना,
न कोई टीकाकरण कार्यक्रम
किया गया है तय,
दो भिन्न क़िस्म के मच्छरों ने
बना लिये हैं अपने
पृथक-पृथक गुट
काटकर किसी भी अबोध को
लगा रहे हैं दूसरे पर
दंश का आरोप
शामिल हैं कहीं न कहीं हम
किसी एक समूह में
कि हमारे मुँह में
ठूँसा हुआ है
निवाले की तरह धर्म,
हम उतार तो सकते हैं
राजा को गद्दी से
मगर रगों में फैलते
इस ज़हर को
नहीं उतार सकते कभी भी!
राहुल बोयल की कविता 'हम बैल थे'