कलरव घर में नहीं रहा, सन्नाटा पसरा है,
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।
पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर
पत्थर बहता है,
अपराधी ने देश बचाया
हाकिम कहता है,
हाकिम का भी अपराधी से रिश्ता गहरा है।
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।
हँसता हूँ जब तुम कबीर की
साखी देते हो,
पैर काटकर लोगों को
बैसाखी देते हो,
दहशत में है आम आदमी, तुमसे ख़तरा है।
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।
ठगा गया है आम आदमी
आया धोखे में,
घर में भूत जमाए डेरा
देव झरोखे में,
गूँगों की पंचायत करने वाला बहरा है।
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।
जैसा तुम बोओगे भाई
वैसा काटोगे,
भैंसे की मन्नत माने हो
भैंसा काटोगे,
तेरी बारी है चोरी की, तेरा पहरा है।
कलरव घर में नहीं रहा, सन्नाटा पसरा है,
सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है।