‘Saraaye’, a poem by Amandeep Gujral
औरतों ने ख़ुद को सराय बना रखा है
कोई दिन को लौटता है
कोई शाम को
और कोई रात को
अपनी-अपनी मजबूरियों की पोटली लिए
हर कोई ढूँढता है जगह
सोने की, नहाने की या फिर
मैला धोने की
फिर चला जाता है दिन, शाम और रात को लौटने के लिए
औरतों ने कई दिन शामें और रातें तन्हा गुज़ारी हैं
सराय बनकर।
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