सच मानिए इंसान एक सरल मशीन है
वह अपनी साइकिल से भी सरल है
सुई-धागे से भी सरल है
मर्द सरल हैं, औरतें उनसे भी सरल हैं
बच्चे ज़रा जटिल होते हैं पर वे भी आख़िर
बढ़कर पहुँचते हैं, बुनियादी सरलता की ओर
सरलता की ख़्वाहिश में वे धीरे-धीरे बड़े होते हैं
जटिलता मार डालती है इंसान को
उसकी सच्चाई को भी मार डालती है

कल एक औरत को जिसे मैं सरल इंसान मानता था
मार डाला एक जटिल और नफ़ीस मर्द ने
(उसकी नफ़ासत के हम सभी क़ायल हैं)
सभी को पता है इस घटना का
ऊपर की मंज़िल से उसे धक्का दिया था
अस्पताल के रास्ते में उसने
दम तोड़ दिया, कुछ बोल नहीं पायी

पुलिस कहती है मामला जटिल है जी
यह आत्महत्या भी हो सकती है
यों किसी पर संदेह भी किया जा सकता है
मोटिव देखना पड़ेगा, क्लू मिलने चाहिए
सीधा प्रमाण कोई है नहीं
आपकी बात हम मान लें कि आत्महत्या यह नहीं थी
तो कारण दीजिए और कारण भी ध्यान रखिए
कई हो सकते हैं

मैं भी सोचता हूँ, कारण यहाँ कई हो सकते हैं
कोई महज़ धक्का दिए जाने से तो मरता नहीं
हाँ गिरने से ज़रूर मर सकता है
गिरने का सम्बन्ध गुरुत्वाकर्षण से है
उस औरत को उसके शौहर ने नहीं
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने मारा।

असद ज़ैदी की कविता 'नामुराद औरत'

Book by Asad Zaidi: