सारे काम निपटाकर तुम्हें याद करने बैठा।
फ़ुर्सत ही नहीं देते लोग
तुम्हारे चेहरे पर नज़र टिकायी नहीं कि कोई आ गया
‘क्या कर रहे हैं?’
‘कुछ भी तो नहीं।’ मैंने कहा!
चोरी-छिपे झाँककर देख लिया, सोचता हुआ —
कहीं इसने देख तो नहीं लिया, मैं जिसे देख रहा था
मेरी दृष्टि का अनुगमन तो नहीं किया इसने
कहाँ से टपक पड़ा मेरे एकान्त में!
चिड़चिड़ तो हुई भीतर लेकिन सम्भाल लिया
बन्द किए धीरे से भीतर के गहरे कपाट
छुपा लिया तुम्हें चुपचाप
डाल दिए पर्दे भारी-भरकम
बन्द किए स्मरण के फैले डैने धीरे-धीरे सम्भलकर
उतरा फिर नीचे-नीचे-नीचे
बोला फिर विहँसकर
‘कहिए, कैसे आ गए बेवक़्त?’
दूधनाथ सिंह की कहानी 'अम्माएँ'