‘Sashart Prem’, Hindi Kavita by Rakhi Singh

मेरे प्रेम में पड़ने की जितनी उत्सुकता है तुम में
मुझे शंका है
मेरी स्वीकार्यता के उपरांत
तुम उतने प्रसन्न रह भी पाओगे या नहीं

मेरा प्रेम पा के क्या पाओगे तुम?

प्रेम के प्रति मेरी चिर परिचित तटस्थता विचलित करेगी तुम्हें
तुम्हारा प्रेम मुझे प्रभावित तो करेगा
पर वो प्रभाव मैं सबसे छुपा लूँगी
क्या तुम नहीं जानते?
हर स्त्री कुशल अभिनेत्री होती है

तुम मुझपर अपना एकाधिकार चाहोगे
ये चाहना तुम्हारा अधिकार भी है
पर मेरा खिलंदड़पन तुम्हें यह जताने से रोकेगा
तुम्हारे न कहने को
मैं अपनी उद्दंडता का अवसर बनाऊँगी
सबके बीच मेरा चुहलपन तुम्हें खिन्न करेगा
कहो तो, करेगा कि नहीं?

तुम्हारी विरह मुझे पीड़ा देगी
पर स्वयं के लिए ‘पीड़िता’ शब्द सख़्त नापसन्द है मुझे
तुम्हारी याद में मैं कलपती नहीं दिखूँगी
न तुम्हें, न औरों को
हाँ मैं जानती हूँ,
यह बात भी खीझ भरेगी तुम में

प्रेम में महान होना
मेरी समझ से परे की बात है
मेरे लिए प्रेम स्वार्थी होने की शै है
मैं तुमसे प्रेम करूँगी
तो मुझे तुम्हारा प्रेम चाहिए होगा

मेरे अनुसार
प्रेम में ‘स्पेस’ के लिए कोई स्पेस नहीं होता
लिहाज़ा, मुझे वक़्त-बेवक़्त तुम्हें टोक सकने की स्वतंत्रता चाहिए
और मुझे अपने हर टोक की ज़वाबी कार्यवाही चाहिए

कितना बोझिल है ना ये सब?
‘कोई शर्त होती नहीं प्यार में’,
फिर भी इतनी शर्तें?
मानो प्रेम न हुआ
किसी सुपरवाइज़र की ड्यूटी हो गई

तभी कहती हूँ
बात मानो मेरी,
मुझसे प्रेम न करना
तुम्हारे हित में है।

यह भी पढ़ें:

प्रह्लाद चंद्र दास की कहानी ‘लटकी हुई शर्त’
रूपम मिश्रा की कविता ‘तुमसे प्रेम करते हुए’
रश्मि सक्सेना की कविता ‘प्रेम की हत्या’

Recommended Book: