‘Shaam’, Hindi Kavita by Abhishant

1.

अन्त में उतर जाता है ताप किरणों का
धूप पड़ जाती है नर्म धीरे-धीरे
सूरज भी मुलायम मन से
शाम-रंग का अंगोछा उठाये
चल देता है समुद्र की ओर

लेकिन जितनी रौशनी छींट देता है
सवेरा अपने बचपने में
उसे समेटने में दिन की देह
शाम तक मटमैली तो हो ही जाती है।

2.

देखिये कि सूरज
उतर रहा है
पहाड़ का अन्तिम ढलान
और किस तरह दिन
अभी भी पोंछ रहा है
पीठ पीछे
छींटें रौशनियों के

शाम से मिलने की गरज़ में दिन
शायद थोड़ी देर और रुकना चाहता है।

3.

शाम की आँखों में
आज बहुत बेसब्री है
कि दिन कब करवट ले
कि रात कब औंधी हो
कि कब रोप दे उसके आँगन में
बिछड़े सितारों को।

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अभि शान्त
A simple banker. Likes Literature. Loves to write Stories. Fascinates to Pen down short Poems.