‘Sharab Ka Theka’, a poem by Yogesh Dhyani
शराब के ठेके के
कुछ ही दूर पर थी एक पान की दुकान
शराब का ठेका पक्का था
और पान की दुकान
बाँस पर टिकी कच्ची गुमटी
एक दिन कुछ छींटें गिरे
गुमटी पर शराब के
पुलिस को पीने वाला नहीं मिला
शराब का स्रोत नहीं मिला
मिला तो निर्दोष गुमटी वाला
जिसे हफ़्ते भर जेल में बन्द रखकर
उसने अपराध को रोकने में
अपनी भूमिका का निर्वहन किया
गुमटी का मालिक
भय से हताश अब लौट गया है गाँव
और रिश्वत से पाया गया
ठेका तो वैध है न
सो उसमें मिल रही है शराब अब भी
कभी भी, कोई भी और किसी को भी।
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