हाय !
कैसी दशा आज
आई है ।
घर-घर में मातम
छाई है ।
वृद्ध-बेबस माता-पिता की
लाचारी है ।
दो टुकड़े रोटी पाने की
आस निरंतर जारी है ।
घर में ही बने शरणार्थी
संतान भोग-विलासी है ।
हाय !
कैसी दशा आज
आई है ।
घर-घर में मातम
छाई है ।
वृद्ध-बेबस माता-पिता की
लाचारी है ।
दो टुकड़े रोटी पाने की
आस निरंतर जारी है ।
घर में ही बने शरणार्थी
संतान भोग-विलासी है ।