‘Sher Aaya, Sher Aaya, Daudna’, a story by Saadat Hasan Manto

ऊँचे टीले पर गडरिये का लड़का खड़ा, दूर जंगलों की तरफ़ मुँह किये चिल्ला रहा था, “शेर आया, शेर आया, दौड़ना!”

बहुत देर तक वह अपना गला फाड़ता रहा। उसकी जवान बुलन्द आवाज़ बहुत देर तक वातावरण में गूँजती रही — जब चिल्ला-चिल्लाकर उसका हलक़ सूख गया तो बस्ती से दो-तीन बूढ़े लाठियाँ टेकते हुए आये और गडरिये के लड़के को कान से पकड़कर ले गये। पंचायत बुलायी गयी — बस्ती के सारे अक्लमंद जमा हुए और गडरिये के लड़के का मुक़दमा शुरू हुआ। आरोप यही था कि उसने ग़लत ख़बर दी और बस्ती के अमन में ख़लल डाला।

लड़के ने कहा, “मेरे बुज़ुर्गों, तुम ग़लत समझते हो… शेर आया नहीं था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आ नहीं सकता।”

जवाब मिला, “वह नहीं आ सकता।”

लड़के ने पूछा, “क्यों?”

जवाब मिला, “वन-विभाग के अफ़सर ने हमें चिट्ठी भेजी थी कि शेर बूढ़ा हो चुका है।”

लड़के ने कहा, “लेकिन तुम्हें यह मालूम नहीं कि उसने, थोड़े ही रोज़ हुए, कायाकल्प करायी है।”

जवाब मिला, “यह अफ़वाह है… हमने वन-विभाग से पूछा था और हमें यह जवाब मिला था कि कायाकल्प कराने की बजाय शेर ने तो अपने सारे दाँत निकलवा दिये हैं, क्योंकि वह अपनी ज़िन्दगी के बकाया दिन अहिंसा में गुज़ारना चाहता है।”

लड़के ने बड़े जोश के साथ कहा, “मेरे बुज़ुर्गो, क्या यह जवाब झूठा नहीं हो सकता?”

सबने एक ज़बान होकर कहा, “हमें वन-विभाग के अफ़सर पर पूरा भरोसा है, इसलिए कि वह सच बोलने की शपथ उठा चुका है।”

लड़के ने पूछा, “क्या यह हलफ़ झूठा नहीं हो सकता?”

जवाब मिला, “हरगिज़ नहीं… तुम साज़िशी हो, फ़िफ़्थ कालमिस्ट हो, कम्युनिस्ट हो, ग़द्दार हो, तरक़्क़ीपसन्द (प्रगतिवादी) हो… सआदत हसन मंटो हो।”

लड़का मुस्कुराया, “ख़ुदा का शुक्र है कि मैं वह शेर नहीं, जो आनेवाला है… मैं वन-विभाग का सच बोलने वाला अफ़सर भी नहीं… मैं…”

पंचायत के एक बूढ़े आदमी ने लड़के की बात काटकर कहा, “तुम उसी गडरिये के लड़के की औलाद हो, जिसकी कहानी वर्षों से स्कूलों की प्रारम्भिक क्लासों में पढ़ाई जा रही है… तुम्हारा हश्र भी वही होगा, जो उसका हुआ था… शेर आयेगा तो तुम्हारी ही बोटी चबा डालेगा।”

गडरिये का लड़का मुस्कुराया, “मैं तो उससे लड़ूँगा। मुझे तो हर घड़ी उसके आने का खटका लगा रहता है… तुम क्यों नहीं समझते हो कि ‘शेर आया, शेर आया’ वाली कहानी, जो तुम अपने बच्चों को पढ़ा रहे हो, आज की कहानी नहीं… आज की कहानी में तो शेर आया, शेर आया का मतलब यह है कि ‘ख़बरदार रहो, होशियार रहो’… बहुत मुमकिन है, शेर की बजाय कोई गीदड़ ही इधर चला आये… इस हैवान को भी रोकना चाहिए।”

सब लोग खिलखिलाकर हँस पड़े, “कितने डरपोक हो तुम… गीदड़ से डरते हो।”

गडरिये के लड़के ने कहा, “मैं शेर और गीदड़, दोनों से नहीं डरता, लेकिन उनकी हैवानियत से अलबत्ता ज़रूर भयभीत रहता हूँ और उस हैवानियत का मुक़ाबला करने के लिए ख़ुद को हमेशा तैयार रखता हूँ… मेरे बुज़ुर्गो, स्कूलों से वह किताब हटा दो, जिसमें ‘शेर आया, शेर आया’ वाली पुरानी कहानी छपी है… उसकी जगह यह नयी कहानी पढ़ाओ।”

एक बुड्ढे ने खाँसते-खँखारते हुए कहा, “यह लौंडा हमें गुमराह करना चाहता है… यह हमें सीधे रास्ते से हटाना चाहता है।”

लड़के ने मुस्कुराकर कहा, “ज़िन्दगी सीधी लकीर नहीं है मेरे बुज़ुर्गो!”

दूसरे बूढ़े ने आक्रोश में काँपते हुए कहा, “यह नास्तिक है… यह अधर्मी है… उपद्रवियों का एजेंट है… इसको फ़ौरन जेल में डाल दो।”

गडरिये के लड़के को जेल में डाल दिया गया।

उसी रात बस्ती में शेर दाख़िल हुआ। भगदड़ मच गयी — कुछ बस्ती छोड़कर भाग गये, बाक़ी शेर ने शिकार कर लिये।

मूँछों के साथ लगा हुआ ख़ून चूसता जब शेर जेल के पास से गुज़रा तो उसने मजबूत लोहे की सलाख़ों के पीछे गडरिये के लड़के को देखा और दाँत पीसकर रह गया। गडरिये का लड़का मुस्कुराया, “दोस्त, यह मेरे बुज़ुर्गों की ग़लती है, वरना तुम मेरे लहू का ज़ाइक़ा भी चख लेते…!”

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Book by Saadat Hasan Manto:

सआदत हसन मंटो
सआदत हसन मंटो (11 मई 1912 – 18 जनवरी 1955) उर्दू लेखक थे, जो अपनी लघु कथाओं, बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और चर्चित टोबा टेकसिंह के लिए प्रसिद्ध हुए। कहानीकार होने के साथ-साथ वे फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने बाइस लघु कथा संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए।