Poems: Harshita Panchariya

स्मृतियाँ

देह के संग्रहालय में
स्मृतियाँ अभिशाप हैं
और यह जानते हुए भी
मैं स्मृतियों की शृंखला
जोड़ने में लगी हूँ

सम्भवतः ‘जोड़ने की कोशिश’
तुम्हें भुलाने की क़वायद में
एकमात्र पर अचूक प्रयास है।

आग

आग, तुमने जला दिया
मेरा घर
मेरा देश
मेरा कल

अब कुछ बचा भी है तुम्हारे पास
जलाने को

आग ने कहा…
जो जलनी चाहिए थी
वह बच गई

‘नफ़रत’
अपने घर से
अपने देश से
बीते हुए कल से

अब मत पूछना
कितना कुछ बचा है
मेरे पास जलाने को!

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