लड़की बेचैन है
उसकी आँखों में जम चुकी हैं
कुछ ठंडी उदासियाँ
जो भारी कर देती हैं पलकें
मगर नींद नहीं ला पातीं

अधपकी नींद में
उसके कानों को उठती है प्यास
लड़के की आवाज़ की प्यास
ओक भर ही सही मगर
उसे उस गुनगुनी आवाज़ के
दो घूँट चाहिए
सपने आँखों में अब पनाह लेने से रहे
मगर कम से कम चुटकी भर नींद तो ठहरे
दो पल का सुकून ही नसीब हो

मगर… ऐसे कैसे!
विछोह के रास्ते पर
फूल नहीं खिला करते
हरी-हरी कोमल दूब
नहीं उगा करती
रंग-बिरंगे सुखों की भीनी सुगंध भी
नहीं मिला करती
शायद
श्राप लगा है प्रेम को
आह छूटी होगी कोई
दुनिया के किसी अपार दुःख की
या कि फिर
ईश्वर ने शायद उसे यूँ ही रचा हो
रूहानी
सुन्दर
अधूरा…

लड़की चाहती है उसे भूल जाना
उसकी स्मृतियों को उसे ही लौटा देना
उसकी छुअन
उसका स्नेह
उसका मन
सब ही
मगर… प्रेम श्रापित है
उसकी नियति है
अधूरा छूटना
टूटना
बिखर जाना…

© ऋतु निरंजन