सूरज मैं तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं अतीत का किस्सा हूँ
मैं आयी हूँ उस गर्भ से
जिस प्रभात के साक्षी तुम
देखो मुझको बेटी समझो
धूप बनाओ आँचल तुम।
रात को जब तुम छुप जाते थे
नींद की गोद में रख जाते थे
नींद टहलने निकल जाती थी
मुझे अकेला छोड़ कर
बीच रात में कितने ही दिन
कमरे कमरे घूमी थी मैं
एक चादर की खोज पर
नहीं मिला जब कुछ ढकने को
कितने ही दिन मैं सोई थी
पलंग की चद्दर ओढ़ कर।
कितने ही दिन मैं सोई थी
पलंग की चद्दर ओढ़ कर।
सूरज मैं तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं अतीत का किस्सा हूँ।