अपने सर्द कमरे में
मैं उदास बैठी हूँ
नीम-वा दरीचों से
नम हवाएँ आती हैं
मेरे जिस्म को छू कर
आग सी लगाती हैं
तेरा नाम ले लेकर
मुझको गुदगुदाती हैं

काश मेरे पर होते
तेरे पास उड़ आती
काश मैं हवा होती
तुझ को छू के लौट आती

मैं नहीं मगर कुछ भी
संग दिल रिवाजों के
आहनी हिसारों में
उम्र-क़ैद की मुल्ज़िम
सिर्फ़ एक लड़की हूँ!

'मुझे मत बताना कि तुम ने मुझे छोड़ने का इरादा किया था'

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परवीन शाकिर
सैयदा परवीन शाकिर (नवंबर 1952 – 26 दिसंबर 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं। वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है।