‘Smritiyaan’, a poem by Deepak Jaiswal

मेरा घर, मेरी माँ, मेरे पिता
मेरा गाँव, यह बारिश, बचपन, दोस्त
यह आकाश और मेरा बग़ीचा
और मेरी बेवफ़ा प्रेमिका
मेरे भीतर जीवित रहते हैं…
जैसे जीवित रहती है मछली
पानी के भीतर
जैसे जीवित रहता केंचुआ
गीली मिट्टी में
स्मृतियों में जीवित रहता हूँ मैं

शाहजहाँ मरा थोड़ी न है…?
इतिहासकारों की आँखें नहीं होती
वे सुन नहीं सकते
वे हाथों पर बस गिनते हैं
कुछ गिनतियाँ
और कह देते हैं शाहजहाँ मर गया…!

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