‘Sparsh’, poems by Shweta Rai

1

पूस की तिमिर नीरव निशा में,
जलते दीये से मिलती ऊष्मा जैसा था तुम्हारा स्पर्श

जिसकी गर्माहट
आज भी घेरे हुए है मुझे

मौसम को चूम कर चूमती हूँ तुम्हारा स्पर्श
गिरते पत्तों की लय में सुनती हूँ
तुम्हारा स्पंदन

फिर तुम्हारी काया पर बिखर जाती हूँ बनकर बूँद मणिका…

2

तुम्हारे स्पर्श से
प्रथम पीला होता है मेरा गात

फिर छूटता है मोह
टूटता है बंध
सहमता है हरा रंग

और अंततः पत्तियों का पीलापन
उभर आता है धरती की कोख से

स्वागतेय
सुरम्य
सौरभ

3

तरंगित
लय बद्ध
धरती के गुरुत्व को देती हुई मान

निरन्तर झरती हुई पत्तियाँ
अगहन के शीतल दहन को झेल
पूस के ऐश्वर्य को
द्विगुणित करती है…

अत्यंत जटिल रातों में
सुलगते हुए ये जानती हैं
स्पर्श की ऊष्मा से साहचर्य के कुसुम खिलाना

4

मौसम के साथ
बदल जाता है स्पर्श का अस्तित्व

पूस में झरती हैं
दुःख की बूंदें
और अलाव सा जलता है सुख

और रात दिन बजता है विछोह का संगीत…

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श्वेता राय
विज्ञान अध्यापिका | देवरिया, उत्तर प्रदेश | ईमेल- [email protected]