‘Srishti Nirmaan’, a poem by Supriya Mishra
ईश्वर की नज़र
जब पहली बार
औरत के स्तनों पर पड़ी
तो प्रेरणा मिली
पहाड़ बनाने की,
फल फूलों से लदे वृक्ष,
जड़ी बूटियाँ बनाने की।
उसने जब देखी
औरत की कमर
तो रचना की
सुन्दर घाटियों ओर वादियों की।
बन्द आँखें देखकर
ग्लेशियर्स बनाए और
आँखें खुली तो
झरने बहे।
जब होंठ थरथराए
तो ईश्वर ने बना दिए
सुन्दर बाग़ बग़ीचे।
केशों से बनी लताएँ।
आवाज़ सुन पंछी बनाए।
उसके गालों की त्वचा से
मिट्टी बनी।
उसके हाथ पकड़े तो बनाए बादल,
पैर चूमे तो धरा बना दी।
औरत के पैरों को देखकर ख़याल आया
कि धरती का घूमते रहना आवश्यक है।
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