लघु-कहानियों के लिए चर्चित अमेरिकी कथाकार लीडिया डेविस ने निबन्ध, अनुवाद और उपन्यास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण काम किया है। फ़्रांसीसी व अन्य भाषाओं पर ख़ासी पकड़ रखने वाली लीडिया की कहानियों को दार्शनिक व मनोवैज्ञानिक एकालाप कहा जाता है। पाँचवे मेन बुकर पुरस्कार से सम्मानित लीडिया, कई बार केवल एक वाक्य में पूरी कहानी कह देती हैं। ये सात कहानियाँ लीडिया के प्रभावोत्पादक कथ्य और विशेष प्रकार के शिल्प के कारण बेजोड़ हैं, जिन्हें ज़िन्दगी से सम्वाद करते शब्दों का ताप अनुभव करने के लिहाज़ से पढ़ा जाना चाहिए।
मूल कहानियाँ: लीडिया डेविस
अनुवाद: उपमा ‘ऋचा’
खोया सामान
वे खो चुके हैं, लेकिन खोए भी नहीं हैं क्योंकि कहीं न कहीं इस संसार में आज भी उनका अस्तित्व है। उनमें से बहुत-से सामान तो काफ़ी छोटे हैं, लेकिन दो अच्छे-ख़ासे बड़े हैं, एक मेरा कोट और दूसरा मेरा कुत्ता। छोटे सामानों में एक अँगूठी और बटन है। ये सामान मुझसे ही खोए हैं या वहाँ से जहाँ मैं थी… मगर वे ख़त्म नहीं हुए, बस कहीं और चले गए हैं, किसी और के पास, शायद! वो अँगूठी या बटन अगर किसी और के पास हैं, तो इसका मतलब वो सामान खोए नहीं है, बस वहाँ नहीं हैं जहाँ मैं हूँ…
डर
लगभग हर सुबह, हमारे मुहल्ले की एक स्त्री अपने रक्त शून्य चेहरे और अस्त-व्यस्त कपड़ों के साथ, अपने घर से दौड़ते हुए बाहर आती है और “बचाओ! बचाओ!” की पुकार लगाती है। हम भागकर उसके पास जाते हैं और उसे तब तक थामे रखते हैं, जब तक कि उसकी भयभीत थरथराहटें मौन नहीं हो जातीं। हम सब जानते हैं कि उसके साथ कुछ अघटित घटित नहीं हुआ है। वो केवल हमें बुद्धू बना रही है, नाटक कर रही है। तथापि रोज़ हम सब भागकर उसके पास इकठ्ठा हो जाते हैं। मेरे ख़याल से यहाँ शायद ही कोई ऐसा होगा जो (कभी-कभी या हर-बार) उसकी चीख़ों से अछूता रह पाएगा क्योंकि हमें पता है कि उसकी चीख़ें दरअसल हमारे मौन की सामर्थ्य को तौल रही हैं, और हमारे साथ-साथ हमारे अपनों की भी…
इंडेक्स एंट्री
क्रिश्चियन, नहीं हूँ मैं।
अर्थ
पुतलियों के घूमने का अर्थ है कि तुम किसी सोच में हो या फिर कुछ सोचना आरम्भ करने वाले हो। अगर इस क्षण, तुम कुछ सोचना नहीं चाहते तो अपनी पुतलियों को स्थिर रखने की कोशिश करो…
चूहे
चूहे हमारी दीवारों में रहते हैं, पर रसोई को परेशान नहीं करते। हम समझ नहीं सकते कि क्यों वे पड़ोसियों के घर की तरह, हमारी भी रसोई में नहीं आते, जहाँ हमने उन्हें पकड़ने के लिए चूहेदानी तैयार कर रखी है। हालाँकि हम ख़ुश हैं, मगर परेशान भी हैं, क्योंकि चूहे हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे हमारी रसोई में कुछ संदिग्ध, कुछ ग़लत हो। हमारी परेशानी को यह बात थोड़ा और उलझा देती है कि हमारा घर, पड़ोसियों की तुलना में कम व्यवस्थित है। हमारी रसोई में ज़्यादा खाना बिखरा रहता है, प्लेटफ़ॉर्म पर ज़्यादा मात्रा में ब्रेड का चूरा गिरा पाया जाता है और प्याज़ तो इधर से उधर लुढ़कती ही रहती हैं, फिर भी… वास्तव में, हमारी रसोई में इतना ज़्यादा खाना खुला रखा रहता है कि कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि चूहे भी उससे हार जाएँगे। मैं जानती हूँ कि एक सुव्यवस्थित रसोई में, रात के अंधेरे में खाना तलाशना कितनी बड़ी चुनौती है। धीरज के साथ घण्टों-घण्टों घात लगाने के बाद कहीं पेट भर खाना मिल पाता है और वह भी ज़रूरी नहीं… जबकि हमारी रसोई में, उन्हें हमेशा इतनी इफ़रात में खाना मिलेगा, जिसका उन्होंने आज तक अनुभव भी नहीं किया होगा। वैसे वे शायद कुछ क़दम बढ़ाने का साहस करते हैं, लेकिन जैसा कि उनकी भुनभुनाती आवाज़ों से पता चलता है, यहाँ की असुविधाजनक गंध और असहज दृश्य उन्हें, वापस उनके बिलों में धकेल देती है।
सैर
सड़क के पास क्रोध का विस्फोट, रास्ते में बोलने से इंकार, पाइन के जंगल में मौन, पुराने रेलरोड पुल के पार सन्नाटा, लहरों के बीच दोस्त बन जाने का प्रयास, सपाट पत्थर पर बहस को ख़त्म करने के विरुद्ध एक अस्वीकार, रेत के अनचाहे किनारों पर ग़ुस्से का एक चीत्कार और झाड़ियों के बीच एक विलाप…
व्यवहार
यह तो आप देखते ही हैं कि कैसे हर बार, हर बात के लिए परिस्थितियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। अगर मैं ज़्यादा से ज़्यादा रूई अपने कान में ठूँस लेती हूँ या अपने सिर को दुपट्टे से बांध लेती हूँ, तो मैं बिल्कुल भी अजीब नहीं हूँ। दरअसल जब मैं अकेली होती हूँ, तब मेरे पास मेरी ज़रूरत भर, मौन और सन्नाटा हमेशा होता है।
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