एक स्त्री
जब भी कोई कोशिश करती है
लिखने की, बोलने की, समझने की
सदा भयभीत-सी रहती है
मानो पहरेदारी करता हुआ
कोई सिर पर सवार हो,
पहरेदार
जैसे एक मज़दूर औरत के लिए
ठेकेदार
या ख़रीदी सम्पत्ति के लिए
चौकीदार,
वह सोचती है लिखते समय क़लम को झुकाकर
बोलते समय बात को सम्भाल ले
और समझने के लिए
सबके दृष्टिकोण से देखे
क्योंकि वह एक स्त्री है!

Book by Sushila Takbhore:

सुशीला टाकभौरे
जन्म: 4 मार्च, 1954, बानापुरा (सिवनी मालवा), जि. होशंगाबाद (म.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी साहित्य), एम.ए. (अम्बेडकर विचारधारा), बी.एड., पीएच.डी. (हिन्दी साहित्य)। प्रकाशित कृतियाँ: स्वाति बूँद और खारे मोती, यह तुम भी जानो, तुमने उसे कब पहचाना (काव्य संग्रह); हिन्दी साहित्य के इतिहास में नारी, भारतीय नारी: समाज और साहित्य के ऐतिहासिक सन्दर्भों में (विवरण); परिवर्तन जरूरी है (लेख संग्रह); टूटता वहम, अनुभूति के घेरे, संघर्ष (कहानी संग्रह); हमारे हिस्से का सूरज (कविता संग्रह); नंगा सत्य (नाटक); रंग और व्यंग्य (नाटक संग्रह); शिकंजे का दर्द (आत्मकथा); नीला आकाश, तुम्हें बदलना ही होगा (उपन्यास)।